QADRI IZZ O RIFAT KI KYA BAAT HAI NAAT LYRICS

QADRI IZZ O RIFAT KI KYA BAAT HAI NAAT LYRICS

 

Qadri izz o rifat ki kya baat hai
Sarwar dee’n se nisbat ki kya baat hai

Marja e ahl e haq aasta’n hai tera
Dar ki noorani rangat ki kya baat hai

Gardan e Awliya par qadam hai tera
Teri noorani kiswat ki kya baat hai

Unke dar se bana duzd Rab ka wali
Ghous ki is inayat ki kya baat hai

Aapke dar ka karta hai kaaba tawaaf
Waah is jaah o hashmat ki kya baat hai

Manga qatra to darya ata kar diya
Unke jood o sakhawat ki kya baat hai

Tu hai shaida e Ghous ul wara aye “Tameem”
Marhaba teri qismat ki kya baat hai

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Az qalam- Peerzada Syed Tameem Hussaini Ashrafi
Farzand e Sajjada Nasheen Bargah e Huzoor Qutbe Raichur

 

 

(🥁ढोल बजाना यज़ीदियों की सुन्नत है)

👉ढोल बाजे:-👇
असीराने करबला और शोहदाए करबला के सरों को लेकर जब यजीदी लश्कर दमिश्क़ पहुंचे और यज़ीद को इल्म हुआ तो उसने तमाम शहर सजवाने और अहले शहर को खुशियां मनाने और घर से बाहर आकर तमाशा देखने का हुक्म दिया? यजीदी खुशियां मनाने लगे।
एक सहाबी-ए-रसूल हज़रत सहल रज़ियल्लाहो तआला अन्हु’ तिजारत के लिये शाम आये हुए थे वह दमिश्क के क़रीब एक क़स्बे से गुज़रे तो आपने देखा कि तमाम लोग खुशी करते ढोल और बाजे बजाते हैं।
उन्होंने एक शख़्स से इस खुशी मनाने की वजह पूछी तो लोगों ने बताया कि अहले ईराक़ ने सरे हुसैन यजीद को हदिया भेजा है तमाम अहले शाम इसकी ख़ुशी मना रहे हैं।
हज़रत सहल रज़ियल्लाहो तआला अन्हु’ ने एक आह भरी और पूछा कि सरे हुसैन कौन से दरवाज़े से लायेंगे? कहा बाबुस्साअ: से।
आप रज़ियल्लाहो तआला अन्हु’ उसकी तरफ़ दौड़े और बड़ी दौड़ धूप के बाद अहले बैत तक पहुंच गये।
आपने देखा कि एक सर मुशाबा सरे रसूल (यानी रसूलुल्लाह ﷺ की तरह) नेज़े पर चढ़ा है जिसे देखकर आप बे इख़्तेयार रो पड़े।😭
अहले बैत में से एक ने पूछा कि तुम हम पर क्यों रो रहे हो? उन्होंने पूछा आपका नाम क्या है? फ़रमाया मेरा नाम सकीना बिन्त हुसैन है।
उन्होंने फ़रमाया मैं आपके नाना का सहाबी हूं मेरे लायक़ जो खिदमत हो फ़रमाइये।
फ़रमाया: मेरे वालिद के सरे अनवर को सबसे आगे करा दो ताकि लोग उधर मुतवज्जह हो जायें और हम से दूर रहें।
उन्होंने चार सौ दिरहम देकर सरे अनवर मसतूरात से दूर कराया।
📘तज़किरा’ सफ़ा १०७)
📕ख़ुत्बाते मुहर्रम’ पेज़ नं 487/488)
📗सच्ची हिकायत’ हिस्सा-दोएम, पेज़ नं 401)

✍सबक़: इस वाक़िआ से मालूम हुआ कि मुहर्रम के दिनों में बाजे बजाना हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के दुश्मन यज़ीदियों की सुन्नत है।
आप के मुहिब्बीन का घर तो मातम कदा बना हुआ था, उन के यहां इस मौक़ा पर बाजा बजने का तो कोई सवाल ही नहीं पैदा होता।
अल्बत्ता इमाम की शहादत की खुशी में यज़ीदियों ने बजाया था मगर अब इमामे आली की मुहब्बत के दावेदार बजाते हैं।
खुदा तआ़ला उन्हें समझ अता फरमाए और यज़ीदियों की सुन्नत पर अमल करने से बचाए। (आमीन)

✍ढोल बजाने वाले को जब कोई उ़लमाए किराम रोकते हैं तो कहता है कि ये हमारे बाप दादा के ज़माने से चला आ रहा है।
येह वही अल्फ़ाज़ है जिसका ज़िक्र अल्लाह अ़ज़्ज़ व जल्ल’ ने क़ुरआने करीम’ में फ़रमाया: और जब कहा जाये उनसे की पैरवी करो उसकी जो अल्लाह ने बताया है तो जवाब में कहते है कि हम तो चलेंगे उसी राह जिस पर हमारे बाप दादा चलें, अगर उनके बाप दादा बेअक्ल हो और बे-राह हो तब भी (यानि दीन की समझ बूझ ना हो तब भी उनके नक्शेकदम पर चलेंगे।
📖सूरए बक़रह’ आयत_170)

✍हक़ीकत खुराफ़ात में खो गई:-👇
जी हाँ मुहर्रम की भी हकीकत खुराफ़ात में खो गई उलमाओं के फ़तवे और अहले हक़ लोगों के बयान मौजूद है फिर भी मुहर्रम की खुराफ़ात पर लोग यही दलील देते है कि यह काम हम बाप दादों के ज़माने से करते आ रहे हैं? बेशक करते होंगे लेकिन कौन से इल्म की रौशनी में जाहिर है वो इल्म नहीं बेईल्मी होगी क्योंकि इल्म तो इस काम को मना कर रहा है।
आप खुद पढ़े “रसूलुल्लाह ﷺ इरशाद फ़रमाते हैं कि अल्लाह अज़्ज़वजल’ ने मुझको ढ़ोल ताशों और बांसुरियों को मिटाने का हुकम दिया।
📗मिश्कात शरीफ़’ सफ़ा ३१८, किताबुल-इमारह फसल सालिस)
📕मुहर्रम में क्या जायज़ क्या नाजायज़’ पेज़ नं 22)

✍और फ़रमाया: बेशक अल्लाह ने मेरे लिए शराब, जुआ, और ढोल बजाना हराम करार कर दिया है।
📕सुनन अबू दाऊद’ हदीस 3696)
📗बहारे शरीअत’ सोलहवाँ हिस्सा, ह़दीस-11, पेज़ 605)

👑आ’ला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी रहमतुल्लाहि तआ़ला अ़लैहि’ फ़रमाते हैं: ढोल बजाना हराम है।
📓फ़तावा रज़विय्या: 10/189)
📕खुताबते मुहर्रम’ पेज़ नं 520)

✍मज़हबे इस्लाम में बतौर लहव व लइब ढोल, बाजे और मजामीर हमेशा से हराम हैं, बुख़ारी शरीफ़ की हदीस है कि अ़ब्दुर्रहमान बिन ग़नम ने रिवायत किया कि मुझ से अबू आ़मिर या अबू मालिक अशअ़री रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हुम’ ने बयान किया: अल्लाह की क़सम! मैं झूठा नहीं हूँ, मैंने नबी करीम ﷺ को फ़रमाते सुना कि मेरी उम्मत में ऐसे बुरे लोग पैदा हो जायेंगे जो गाने-बजाने (बाजों ताशों) को हलाल ठहरायेंगे।
📕सह़ीह़ बुख़ारी शरीफ़’ जिल्द-4, हदीस 5590, पेज़ नं 68)

✍दूसरी हदीस में हुज़ूर नबी करीम ﷺ ने क़ियामत की निशानियां बयान करते हुए फ़रमाया क़ियामत के क़रीब नाचने गाने वालियों और बाजे ताशों की कसरत हो जाएगी।
📕तिर्मिज़ी, मिश्कात बाबे अशरातुस्साअ़ह सफ़हा ४७०)
📗ग़लतफ़हमियाँ और उनकी इस्लाह’ पेज़ नं 141)

✍हज़रत इमाम मुजाहिद रहमतुल्लाहि अ़लैहि’ फ़रमाते हैं: गाने बाजे शैतान की आवाजें हैं, जिसने उन्हें सुनाया गोया उसने शैतान की आवाज़ सुनी।
📓हादीयुन्नास फ़ी रुसूमुल-ऐरास’ सफ़ा 18, अज़: आला हज़रत अलैहिर्रहमा)
📗क़रीना-ए-ज़िन्दगी’ पेज़ नं 51)

✍हज़रत शफ़ीक बिन सलमा रज़ियल्लाहु तआ़ला रिवायत करते हैं कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊ़द रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु’ ने इरशाद फ़रमाया: गीत गाने, ढोल बाजे दिल में यूं निफाक़ उगाते हैं जैसे पानी सब्ज़ा उगाता है।
📘तंबीहुल-ग़ाफ़ेलीन’ सफ़ा 170)
📗क़रीना-ए-ज़िन्दगी’ पेज़ नं 51)

✍सुल्तानुल-मशाइख़ महबूबे इलाही हज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाहि अ़लैहि’ अपनी मल्फज़ात “फवाइदुल-फ़वाद शरीफ़” में इरशाद फ़रमाते हैं: मज़ामीर हराम अस्त० या’नी ढोल बाजे हराम हैं।
📘फ़वाइदुल-फ़ुवाद शरीफ़’ बाब सोम, पाँचवीं मज्लिस सफ़ा 189)
📗क़रीना-ए-ज़िन्दगी’ पेज़ नं 51)

✍हज़रत मख़्दूम शर्फुल-मिल्लते वद्दीन यहिया मुनयरी रहमतुल्लाहि अ़लैहि’ ने ढोल बाजों को मिस्ल ज़िना को हराम फ़रमाया हैं।
📕बहवाला: अहकामे शरीअत जिल्द-2, सफ़ा 156)
📗क़रीना-ए-ज़िन्दगी’ पेज़ नं 51

✍प्यारे भाइयों! यह ताज़िया ढोल ताशे सब लग़्व व ख़ुराफ़ात हैं, इन से हरगिज़ हज़रत सैयिदना इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु खुश नहीं।
यह तुम ख़ुद गौर करो कि उन्हों ने ऐहयाए दीन व सुन्नत के लिये यह जबर्दस्त क़ुर्बानियां कीं और तुम ने मआज़ल्लाह इस को बिद्अ़त का ज़रिया बना लिया।
✍फक़ीहे मिल्लत अ़ल्लामा मुफ़्ती जलालुद्दीन अह़मद अमजदी साहब)

👹शैत़ान की एक चाल और उस का एक दांव है कि जब वह मज़हबी भले और दीन दार लोगों से खेल तमाशे नहीं कर पाता तो धीरे-धीरे मज़हबी कामों को ही खेल तमाशों में तब्दील कराने की कोशिश में लग जाता है।
मुह़र्रम में हज़रत सय्यिदुना इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु’ के नाम पर जो ताजियादारी होती है इस का और आज के बहुत से उ़र्सों का बिल्कुल यही मुआ़मला है और अब बहुत सारे जुलूसों का हाल भी यही होने जा रहा है, ढोल बाजे, खेल तमाशे, कूद फांद, शोर हंगामे, नौटंकियों वाली बातें और काम इन में भी होने लगे, आगे आगे देखिये होता है क्या, ख़ुदा महफूज़ रखे शैत़ान की तरकीबों और उनकी चालों से।
काफ़ी जुलूसों में अब नाम मज़हब का है इस्लाम का और पैग़म्बर इस्लाम का और काम हो रहे हैं शैत़ान को ख़ुश करने वाले खेल।
✍मौलाना ततहीर अहमद बरेलवी साहब)
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✍मैं मुहम्मद तौह़िद हन्फी बरेलवी! अवाम से कहना चाहूंगा कि ऐसे मौलवियों से जो ताज़िया ढोल ताशा को जायज़ बता रहा है अपने आप को उन से बचाएं, और हो सके तो ख़ास कर उन जैसे मुकर्रिर हज़रात से खुद को दूर रखें, आवाम को गुमराह करना और इनमें इंतिशार पैदा करना अब इनका पेशा कारोबार बन गया है।
बस अपने मस्जिद के इमाम को Follow करें और उ़़-लमाए अहले सुन्नत की किताबों का खुद से मुत़ालअ़ करें।
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👤मुझे अपनी और सारी दुनिया के लोगो के इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله عزوجل
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“बराये करम इस पैग़ाम को शेयर कीजिये अल्लाह आपको इसका अजर–ए–अज़ीम ज़रूर देगा आमीन..,_(►जज़ाकअल्लाह खैरन◄)
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✍अपने नेक दुआओ में याद रखें, मौहम्मद तौहीद)
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