AASIYO KO DAR TUMHARA MIL GAYA NAAT LYRICS
Aasiyo ko dar tumhara mil gaya
Be thikano ko thikana mil gaya
Fazle rab se fir kami kis baat ki
Mil gaya sab kuchh jo Tayba mil gaya
Kashf-e-roze mar rahani yu hua
Tum mile to haq Ta’ala mil gaya
Unke darne sabse mustagni kiya
Be talab be khvahish itna mil gaya
Na-khudai ke liye aae huzur
Dubato niklo sahara mil gaya
Ankhe purnam hogai sar juk gaya
Jab tera naksh-e-kaf e pa mil gaya
Khuld kesa kya chaman kiska vatan
Mujko sehra-e-madina mil gaya
Unke talib ne jo chaha paliya
Unke saeel ne jo manga mil gaya
Tere darke tukde hai aur me garib
Mujko rozi ka thikana mil gaya
Ae HASAN fir to sune jae janab
Ham ko sehra-e-madina mil gaya
#सुवाल : क्या अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के इलावा अम्बिया व औलिया को भी लफ्ज़े “या” के साथ पुकार सकते हैं ❓
#जवाब : लफ़्ज़े “या” अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के साथ खास नहीं, अल्लाहعَزَّوَجَلَّ के इलावा अम्बियाए किराम عَلَيْهِمُ الصَّلٰوةُ وَ السَّلَام और औलियाए इज़ाम को भी लफ़्ज़े “या” के साथ पुकार सकते हैं इस में शरअन कोई हरज नहीं,
लफ़्ज़े “या” अरबी जुबान का लफ़्ज़ है जिस के मा’ना हैं “ऐ”, रोज़मर्रा की आम गुफ्तगू में भी लफ़्ज़े “या” का आम इस्ति’माल है जैसा कि मशहूर मुहावरा है “या शैख अपनी अपनी देख” इस मुहा-वरे में भी गैरुल्लाह को “या” के साथ मुखातब किया जाता है।
कुरआने करीम में कई मकामात पर लफ़्ज़े “या” अल्लाहعَزَّوَجَلَّ के इलावा भी आया है
मसलन ( یٰۤاَیُّهَا النَّبِیُّ ऐ गैब की ख़बरें बताने वाले (नबी) (یٰۤاَیُّهَا الرَّسُوْلُ ऐ रसूल) (یٰۤاَیُّهَا الْمُزَّمِّلُ ऐ झुरमट मारने वाले) (یٰۤاَیُّهَا الْمُدَّثِّرُ ऐ बाला पोश ओढ़ने वाले)
या इब्राहीम- ऐ इब्राहीमعَلَيْهِ السَّلَام
या मूसा – ऐ मूसाعَلَيْهِ السَّلَام
या ईसा – ऐ ईसाعَلَيْهِ السَّلَام
या नूह – ऐ नूहعَلَيْهِ السَّلَام
या दावूद- ऐ दावूदعَلَيْهِ السَّلَام
आम इन्सानों को भी लफ़्ज़े “या” के साथ पुकारा गया है : يا أَيُّهَا النَّاسُ ऐ लोगो ! इस के इलावा भी कुरआने मजीद में बे शुमार जगह पर लफ़्ज़े “या” गैरुल्लाह के साथ आया है।
अहादीसे मुबारका में भी कसरत के साथ लफ़्ज़े “या” अल्लाहعَزَّوَجَلَّ के इलावा , आया है। सहाबए किरामعَلَيْهِمُ الرِّضْوَان सरकारे आली वकारصَلَّی اللّٰهُ تَعَالٰى عَلَيْهِ وَ اٰلِهٖ وَسَلَّم को ,या नबिय्यल्लाह, या रसूलल्लाह कह कर ही पुकारते थे मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है : (जब सरकारﷺ मक्कए मुकर्रमा से हिजरत फ़रमा कर मदीनए मुनव्वरह तशरीफ लाये, तो मर्द और औरतें घरों की छतों पर चढ़ गए और बच्चे और खुद्दाम रास्तों में फैल गए और वोह नारे लगा रहे थे (या मुहम्मद या रसूलल्लाह, या मुहम्मद या रसूलल्लाह ﷺ
नबिय्ये करीम, रऊफुर्रहीमﷺ ने एक नाबीना सहाबीرَضِيَ اللّٰهُ تَعَا لٰى عَنْهُ को दुआ ता’लीम फरमाई जिस में अपने नामे नामी इस्मे गिरामी के साथ लफ़्ज़े “या” इर्शाद फरमाया : चुनान्चे हज़रते सय्यिदुना उस्मान बिन हुनैफ़ رَضِيَ اللّٰهُ تَعَا لٰى عَنْهُ से रिवायत है कि एक नाबीना सहाबी رَضِيَ اللّٰهُ تَعَا لٰى عَنْهُ नबिय्ये करीमﷺ की बारगाहे अज़ीम में हाज़िर हुए और अर्जु की : (या रसूलल्लाहﷺ !( अल्लाह عزوجل से दुआ कीजिये कि वोह मुझे आफ़िय्यत दे (या’नी मेरी बीनाई लौटा दे), आप ﷺ ने फरमाया: “अगर तू चाहे तो दुआ करूं और चाहे तो सब्र कर और येह तेरे लिये बेहतर है।” उन्हों ने अर्ज की दुआ फरमा दीजिये । आपﷺ ने उन्हे अच्छी तरह वुजू करने और दो रकात नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया और फ़रमाया येह दुआ करना
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ وَأَتَوَجَّهُ إِلَيْكَ بِمُحَمَّدٍ نَبِيِّ الرَّحْمَةِ، يَا مُحَمَّدُ، إِنِّي قَدْ تَوَجَّهْتُ بِكَ إِلَى رَبِّي فِي حَاجَتِي هَذِهِ لِتُقْضَى اللَّهُمَّ شَفِّعْهُ فِيَّ
या’नी ऐ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ! मैं तुझ से सुवाल करता हूं और तेरी तरफ़ मु-तवज्जेह होता हूं तेरे नबी मुहम्मद जीए से जो नबिय्ये रहमतﷺ हैं, या रसूलल्लाहﷺ ! मैं आप के जरीए से अपने रब क की तरफ़ इस हाजत के बारे में मु-तवज्जेह होता हूं ताकि मेरी येह हाजत पूरी हो, ऐ अल्लाहعَزَّوَجَلَّ ! इन की शफाअत मेरे हक़ में कबूल फ़रमा (ईब्ने माजा-1385)
(1) हज़रते सय्यिदुना उस्मान बिन हुनैफ़ رَضِيَ اللّٰهُ تَعَا لٰى عَنْهُ फ़रमाते हैं : खुदा की कसम ! हम उठने भी न पाए थे और न ही हमारी गुफ्त-गू ज़ियादा तवील हुई थी कि वोह हमारे पास आए, गोया कभी नाबीना ही न हुए ।
(2) मा’लूम हुवा कि गैरुल्लाह को लफ़्ज़े “या” के साथ पुकारना शिर्क नहीं अगर यह शिर्क होता तो कुरआन व हदीस में गैरुल्लाह के साथ लफ़्ज़े “या” न आता और खल्क के रहबर, शाफेए महशर صَلَّى اللهُ تَعَالٰى عَلَيْهِ وَالِهِ وَسَلَّم हरगिज़ इस की ता’लीम इर्शाद न फ़रमाते और न ही सहाबए किराम عَلَيْهِمُ الرِّضْوَان इस पर अमल पैरा होते ।
गैज़ में जल जाएं बे दीनों के दिल
या रसूलल्लाह की कसरत कीजिये
हदीसे पाक में “या मुहम्मद” है मगर इस की जगह “या रसूलअल्लाहﷺ” कहना चाहिये कि हुजूरे अक्दस ﷺ को नाम ले कर निदा करना जाइज़ नहीं , उ-लमा फ़रमाते हैं: अगर रिवायत में वारिद हो जब भी तब्दील कर लें।
मजीद तफ्सीलात जानने के लिये आ’ला हजरत के फतावा रजविय्या जिल्द 30 में मौजूद रिसाले का सफा – 156 ता 157 का मुता-लआ कीजिये ।
🔴हिदायत के मोती👇
✪ दिलो में बदगुमानी पैदा हो जाए तो फोरन उस पर वजाहत का लेप मल लो, वरना चुप का जहर रिश्ते को हमेशा के लिए अपाहिज कर देगा।
✪ बेहतरीन मर्द वो है जो देर से नाराज हो और जल्दी मान जाए।
✪ किसीका दिल तोड़ कर माफ़ी मांगना बहुत आसान है, लेकिन अपना दिल टूटने पर किसीको माफ़ कर देना बहुत मुश्किल है।
✪ जो तुम्हारा गुस्सा बर्दाश्त करे और साबित कदम रहे तो वो तुम्हारा सच्चा दोस्त है।
✪ जब इंसान नाराज़गी खत्म करने में पहेल करता है, तो इस्का मतलब ये नहीं है कि वो गलत था, इस्का मतलब है कि उसे अना से ज़्यादा रिश्ते अज़ीज़ हैं।
✪ जान्ते हो मुहब्बत किया है ? हर उस बात को नज़र अंदाज़ करना, जिससे ताअल्लुक टूट जाने का अंदेशा हो।
✪ ज़बान अल्फाज़ केहती है और लेहजा सच बताता है।
✪ अपनी औलाद की बेहतरी की फ़िक्र करो, सहूलतों की नहीं, परिंदे अपने बच्चों को परवाज़ करना सिखाते हैं घोंसले बना कर नहीं देते।
✪ जब टांगे खींचने वाले अचानक टांगे दबाने लगे तो समझलो के दाल में कुछ काला है।
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