Mere Giyarween Wale Peer Lyrics
मुश्किल पड़े तो याद करो दस्तग़ीर को
बग़दाद वाले हज़रत-ए-पीराने पीर को
या ग़ौस अल मदद, या ग़ौस अल मदद
या जीलानी शैअन लिल्लाह
या जीलानी शैअन लिल्लाह
या जीलानी शैअन लिल्लाह ….
ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर है साया ग़ौसे आज़म का
हमें दोनों जहां में है सहारा ग़ौसे आज़म का
ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर है साया ग़ौसे आज़म का
ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर है साया ग़ौसे आज़म का
मीरां.. मीरां… मीरां ….
या शाहे जीलां करम है तेरा….
मेरे ग्यारहावीं वाले पीर, ग़ौसे आज़म दस्तगीर
तेरे दर का मैं फक़ीर, ग़ौसे आज़म दस्तगीर
तेरा रुतबा बेनज़ीर, ग़ौसे आज़म दस्तगीर
मेरी चमका दी तक़दीर, ग़ौसे आज़म दस्तगीर
(हमारी लाज किसके हाथ है बग़दाद वाले के
मुसीबत टाल देना काम किसका ग़ौसे आज़म का)
ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर, है साया ग़ौसे आज़म का
ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर, है साया ग़ौसे आज़म का
मैं क़ादरी – मैं क़ादरी – मैं क़ादरी – मैं क़ादरी
मैं क़ादरी – मैं क़ादरी – मैं क़ादरी – मैं क़ादरी
मैं क़ादरी – मैं क़ादरी – मैं क़ादरी – मैं क़ादरी
मैं क़ादरी – मैं क़ादरी – मैं क़ादरी – मैं क़ादरी
मुह़म्मद का रसूलों में है जैसे मर्तबा आ़ला
है अफ़ज़ल औलिया में यूं ही रुतबा ग़ौसे आज़म का
ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर है साया ग़ौसे आज़म का
ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर है साया ग़ौसे आज़म का
मेरा पीर, मेरा पीर, मेरा पीर
दस्तगीर, दस्तगीर, दस्तगीर दस्तगीर
पीराने पीर रौशन जमीर
रौशन जमीर बग़दाद वाले पीराने पीर
जनाब-ए-़ग़ौस दूल्हा और बराती औलिया होंगें
मज़ा दिखलाएगा महशर में सेहरा ग़ौसे आज़म का
निदा देगा मुनादी हश्र में यूं क़ादरीयों को
किधर हैं क़ादरी? कर लें नज़ारा ग़ौसे आज़म का
मुख़ालिफ़ क्या करें मेरा की है बेहद करम मुझ पर
ख़ुद का रहमतुल्लिल आलमीं का ग़ौसे आज़म का
मेरे ग्यारहावीं वाले पीर, ग़ौसे आज़म दस्तगीर
तेरे दर का मैं फक़ीर, ग़ौसे आज़म दस्तगीर
तेरा रुतबा बेनज़ीर, ग़ौसे आज़म दस्तगीर
मेरी चमका दी तक़दीर, ग़ौसे आज़म दस्तगीर
जमीले कादरी सौ जान से क़ुर्बान मुर्शिद पर
बनाया जिसने मुझ जैसे को बंदा गौसे आज़म का
Naat: Hafiz Tahir Qadri
Shayar: Jamilur Rahman Qadri
Mere Giyarween Wale Peer Lyrics In English
Mushkil Pade To Yaad Karo Dasgeer Ko
Baghdad Wale Hazrat-E-Peeran-E-Peer Ko
Ya Ghaus Almadad, Ya Ghaus Almadad
Ya Jilani Shai’an Lillah
Ya Jilani Shai’an Lillah
Ya Jilani Shai’an Lillah….
Khuda Ke Fazl Se Ham Par Hai Saya Ghause Azam Ka
Khuda Ke Fazl Se Ham Par Hai Saya Ghause Azam Ka
Khuda Ke Fazl Se Ham Par Hai Saya Ghause Azam Ka
Khuda Ke Fazl Se Ham Par Hai Saya Ghause Azam Ka
Meerañ… Meerañ… Meerañ…
Ya Shahe Jilañ Karam Hai Tera…
Mere Gyarahwiñ Wale Peer Ghause Azam Dastgeer
Tere Dar Ka Main Faqir Ghause Azam Dastgeer
Tera Rutba Be-Nazeer Ghause Azam Dastgeer
Meri Chamaka Di Taqdeer Ghause Azam Dastgeer
Hamari Laaj Kis Ke Haath Hai Baghdad Wale
Musibat Taal Dena Kaam Kiska Ghause Azam Ka
Khuda Ke Fazl Se Ham Par Hai Saya Ghause Azam Ka
Khuda Ke Fazl Se Ham Par Hai Saya Ghause Azam Ka
Main Qadri – Main Qadri – Main Qadri – Main Qadri
Main Qadri – Main Qadri – Main Qadri – Main Qadri
Main Qadri – Main Qadri – Main Qadri – Main Qadri
Main Qadri – Main Qadri – Main Qadri – Main Qadri
Muhammad Ka Rasoolon Me Hai Jaise Martaba Aala
Hai Afzal Auliya Me Yun Hi Rutba Ghause Azam Ka
Khuda Ke Fazl Se Ham Par Hai Saya Ghause Azam Ka
Khuda Ke Fazl Se Ham Par Hai Saya Ghause Azam Ka
Mera Peer, Mera Peer, Mera Peer
Dasgeer, Dastgeer, Dastgeer, Dastgeer
Peerane Peer Roushan Jameer
Roushan Jameer Pirane Peer
Janab E Ghaus Dulha Aur Baraati Auliya Honge
Maza Dikhlayega Mahshar Me Sehra Ghause Azam Ka
Nida Dega Munadi Hashr Me Yun Qadriyon Ko
Kidhar Hain Qadri? Kar Leñ Nazara Ghuase Azam Ka
Mukhalif Kya Karen Mera Hai Behad Hi Karam Mujh Par
Khuda Ka Rahmatullil Aalmiñ Ka Ghause Azam Ka
Mere Gyarahwiñ Wale Peer Ghause Azam Dastgeer
Tere Dar Ka Main Faqir Ghause Azam Dastgeer
Tera Rutba Be-Nazeer Ghause Azam Dastgeer
Meri Chamaka Di Taqdeer Ghause Azam Dastgeer
Jameel-E-Qadri So Jaan Se Qurban Murshid Par
Banaya Jisne Mujh Jaise Ko Banda Ghause Azam Ka
The lyrics of “Mere Giyarween Wale Peer” are as follows:
When in trouble, remember Dasgeer
The Peer of Peers from Baghdad
Oh Ghaus, the Benefactor, Oh Ghaus, the Benefactor
Oh Jilani, the devotee of Allah
Oh Jilani, the devotee of Allah
Oh Jilani, the devotee of Allah…
Through the grace of God, we are blessed with the shade of Ghause Azam
Through the grace of God, we are blessed with the shade of Ghause Azam
Merañ… Merañ… Merañ…
Oh Shahe Jilañ, your kindness is unmatchable…
My Gyarahwiñ Wale Peer, Ghause Azam Dastgeer
I am a Faqir at your doorstep, Ghause Azam Dastgeer
Your rank is unparalleled, Ghause Azam Dastgeer
My fate has been brightened by you, Ghause Azam Dastgeer
Whose hands hold our honor, O Baghdad Wale?
Whose job is to ward off calamities, Ghause Azam’s job?
Through the grace of God, we are blessed with the shade of Ghause Azam
Through the grace of God, we are blessed with the shade of Ghause Azam
I am a Qadri, I am a Qadri, I am a Qadri, I am a Qadri
I am a Qadri, I am a Qadri, I am a Qadri, I am a Qadri
I am a Qadri, I am a Qadri, I am a Qadri, I am a Qadri
I am a Qadri, I am a Qadri, I am a Qadri, I am a Qadri
As in the status of Muhammad’s Messengers, there is none like it
In the rank of the highest saints, there is Ghause Azam’s status
Through the grace of God, we are blessed with the shade of Ghause Azam
Through the grace of God, we are blessed with the shade of Ghause Azam
My Peer, my Peer, my Peer
Dasgeer, Dastgeer, Dastgeer, Dastgeer
Peer of Peers, illuminated conscience
Illuminated conscience, Pir of Peers
Janab E Ghaus, the groom, and the guests will be the saints
Ghause Azam’s turban will be impressive in the Last Judgment
In Hashr, the announcer will call out to Qadris like this
Where are the Qadris? Behold the sight of Ghause Azam
What can my opponents do? God’s mercy is vast
Ghause Azam’s mercy is for the whole world
My Gyarahwiñ Wale Peer, Ghause Azam Dastgeer
I am a Faqir at your doorstep, Ghause Azam Dastgeer
Your rank is unparalleled, Ghause Azam Dastgeer
My fate has been brightened by you, Ghause Azam Dastgeer
Sleep with devotion on the Murshid
Who made someone like me his servant, Ghause Azam
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हिन्दी फातिहा
ⓩ इस पोस्ट में आप फ़ातिहा का सुबूत क़ुर्आन हदीस फुक़्हा व खुद वहाबियों की किताबों से पाएंगे,इसके अलावा फ़ातिहा का तरीक़ा फातिहा कौन दे सकता है और कौन नहीं,इसके अलावा फ़ातिहा देने के क्या फायदे हैं वो भी दर्ज हैं,पर अफसोस सिर्फ हिंदी में एडिट कर पाया हूं इसलिए हिंदी में ही भेज रहा हूं इन शा अल्लाह रोमन इंग्लिश में एडिट करके बाद में वेबसाइट पर अपलोड कर दूंगा
क़ुर्आन
1. और जो खर्च करते हैं उसे अल्लाह की नजदीकियों और रसूल से दुआयें लेने का ज़रिया समझें
📕 पारा 11,सूरह तौबा,आयत 99
ⓩ तफसीर खज़ाईनुल इरफान में है कि यही फातिहा की अस्ल है कि सदक़ा देने के साथ ख़ुदा से मग़फिरत की उम्मीद करें अब क़ुर्आन की ये तीन आयतें देखिये
2. और हम क़ुर्आन में उतारते हैं वो चीज़ जो ईमान वालों के लिए शिफा और रहमत है
📕 पारा 15,सूरह बनी इस्राईल,आयत 82
3. ऐ ईमान वालों खाओ हमारी दी हुई सुथरी चीज़ें
📕 पारा 2,सुरह बक़र,आयत 172
4. ऐ हमारे रब हमें बख्श दे और हमारे उन भाईयों को भी जो हमसे पहले ईमान ला चुके
📕 पारा 28,सूरह हश्र,आयत 10
ⓩ मतलब क़ुर्आन पढ़ना जायज़,हर हलाल खाना जायज़,दुआये मग़फिरत करना भी जायज़,और इन सबको एक साथ कर लिया जो कि फातिहा में होता है तो हराम और शिर्क,वाह रे वहाबियों का दीन
हदीस
5. सहाबिये रसूल हज़रत सअद की मां का इंतेक़ाल हो गया तो आप नबी सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में पहुंचे और पूछा कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरी मां मर गई तो कौन सा सदक़ा उनके लिए अफज़ल है तो हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि पानी,इस पर हज़रते सअद ने एक कुंआ खुदवाया और कहा कि ये उम्मे सअद के लिए है
📕 अबु दाऊद,जिल्द 1,सफह 266
6. हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम दो क़ब्रों के पास से गुज़रे तो फरमाया कि इन क़ब्र वालों पर अज़ाब हो रहा है और किसी बड़े गुनाह की वजह से नहीं बल्कि एक तो पेशाब की छींटों से नहीं बचता था और दूसरा चुगली करता था फिर आपने एक तर शाख तोड़कर दोनों कब्रों पर रख दी और फरमाया कि जब तक ये टहनियां ताज़ा रहेंगी तब तक उन पर अज़ाब में कमी रहेगी
📕 मिश्क़ात,जिल्द 1,सफह 42
ⓩ इससे 3 बातें साबित हुई पहली ये कि हुज़ूर ग़ैबदां है जब ही तो कब्र के अंदर अज़ाब होता देख लिया और दूसरी ये कि क़ब्र पर फूल वग़ैरह डालना साबित हुआ और तीसरी ये कि जब तर शाख की तस्बीह से अज़ाब में कमी हो सकती है तो फिर मुसलमान अगर क़ुर्आन पढ़कर बख्शेगा तो क्यों कर मुर्दों से अज़ाब ना हटेगा
7. एक शख्श नबी सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुआ और कहा कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरी मां का इंतेक़ाल हो गया है और उसने कुछ वसीयत ना की अगर मैं उसकी तरफ से कुछ सदक़ा करूं तो क्या उसे सवाब पहुंचेगा फरमाया कि हां
📕 बुखारी,किताबुल विसाया,हदीस नं0 2756
8. हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम हर साल दो बकरे क़ुर्बानी किया करते जो कि चितकबरे और खस्सी हुआ करते थे एक अपने नाम से और एक अपनी उम्मत के नाम से
📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 130
ⓩ अब इस रिवायत से क्या क्या मसले हल हुए ये भी समझ लीजिये पहला ये कि अगर सवाब नहीं पहुंचता तो नबी सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम क्यों अपनी उम्मत के नाम से बकरा ज़बह कर रहे हैं दूसरा ये कि जो लोग ग्यारहवीं शरीफ के जानवर को हराम कहते हैं कि ग़ैर की तरफ मंसूब हो गया तो फिर क़ुर्बानी भी ना करनी चाहिए कि वहां भी हर आदमी अपने या अपने अज़ीज़ों के नाम से ही क़ुर्बानी करता है और तीसरा ये कि क़ुर्बानी के लिए नबी सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जिन बकरों को काटा वो खस्सी थे ये भी याद रखें
9. जंगे तबूक के मौके पर जब खाना कम पड़ गया तो हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जिसके पास जो था सब मंगवाकर अपने सामने रखा और दुआ फरमाई तो खाने में खूब बरक़त हुई
📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 538
ⓩ वहां कुंआ भी सामने ही मौजूद था और यहां खाना भी और दोनों जगह दुआ की गई मगर ना तो कुंअे का पानी ही हराम हुआ और ना ही खाना
फिक़ह
10. हज़रते इमाम याफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अपनी किताब क़ुर्रतुल नाज़िर में लिखते हैं कि एक मर्तबा सरकारे ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने 11 तारीख को हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में नज़्र पेश की,जिसको बारगाहे नब्वी से क़ुबूलियत की सनद मिल गई फिर तो सरकारे ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हर महीने की 11 तारीख को हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में नज़राना पेश करने लगे,चुंकि आपका नज़्रों नियाज़ का मामूल हमेशा का था सो मुसलमानो ने इसे आपकी तरफ़ ही मंसूब कर दिया जिसे ग्यारहवीं शरीफ कहा जाने लगा,खुद सरकार ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का फरमान है कि मैंने कितनी ही इबादात और मुजाहिदात किये मगर जो अज्र मैंने भूखों को खाना खिलाने में पाया उतना किसी अमल से ना पाया काश कि मैं सारी ज़िन्दगी सिर्फ लोगों को खाना खिलाने में ही सर्फ़ कर देता
📕 हमारे ग़ौसे आज़म,सफह 282
*ⓩ क्या ये दलील कम है कि खुद हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हर महीने हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम की नज़्र यानि फातिहा ख्वानी का एहतेमाम करते थे,और आपके बाद भी पिछले 800 साल से ज़्यादा के बुज़ुर्गाने दीन और उल्माये किराम का अमल इसी पर रहा है सिवाए मुट्ठी भर वहाबियों को छोड़कर,और ज़रूरत पड़ने पर खुद उनके यहां भी फातिहा होती है जैसा कि अब मैं उनकी किताबों से ही दलील देता हूं
वहाबियों की किताब
11. इस्माईल देहलवी ने लिखा – पस जो इबादत कि मुसलमान से अदा हो और इसका सवाब किसी फ़ौत शुदा की रूह को पहुंचाये तो ये बहुत ही बेहतर और मुस्तहसन तरीक़ा है…..और अमवात की फातिहों और उर्सों और नज़रो नियाज़ से इस काम की खूबी में कोई शक़ व शुबह नहीं
📕 सिराते मुस्तक़ीम सफह 93
ⓩ वाह वाह,एक तरफ तो लिख रहे हैं कि फातिहा अच्छी चीज़ है और दूसरी तरफ हराम और शिर्क का फतवा भी,इन वहाबियों की अक़्ल पर पत्थर पड़ गये हैं
12. क़ासिम नानोतवी ने लिखा – हज़रत जुनैद बग़दादी रहमतुल्लाह अलैहि के किसी मुरीद का रंग यकायक बदल गया आपने सबब पूछा तो कहने लगा कि मेरी मां का इंतेक़ाल हो गया है और मैं देखता हूं कि फरिश्ते मेरी मां को जहन्नम की तरफ लिए जा रहे हैं तो हज़रत जुनैद के पास 1 लाख या 75000 कल्मा तय्यबह पढ़ा हुआ था आपने दिल ही दिल में उसकी मां को बख्श दिया फिर क्या देखते हैं कि वो जवान खुश हो गया,फिर आपने पूछा कि अब क्या हुआ तो वो कहता है कि अब मैं देखता हूं कि फरिश्ते मेरी मां को जन्नत की तरफ लिए जा रहे हैं,तो हज़रत जुनैद बग़दादी फरमाते हैं कि आज दो बातें साबित हो गई पहली तो इसके मुक़ाशिफा की इस हदीस से और दूसरी इस हदीस की सेहत इसके मुक़ाशिफा से
📕 तहज़ीरुन्नास,सफह 59
ⓩ ये रिवायत बिलकुल सही व दुरुस्त है मगर सवाल ये है कि ईसाले सवाब की ये रिवायत इन वहाबियों ने अपनी किताब में क्यों लिखी क्या उनके नज़दीक भी ईसाले सवाब पहुंचता है और अगर पहुंचता है जैसा कि अभी आगे आता है जो फिर मुसलमानों पर इतना ज़ुल्म क्यों,क्यों जब कोई सुन्नी फातिहा ख्वानी का एहतेमाम करता है तो उस पर हराम और शिर्क का फतवा लगाया जाता है
13. रशीद अहमद गंगोही ने लिखा – एक बार इरशाद फरमाया कि इक रोज़ मैंने शेख अब्दुल क़ुद्दूस के ईसाले सवाब के लिए खाना पकवाया था
📕 तज़किरातुर्रशीद,जिल्द 2,सफह 417
14. खाना तारीखे मुअय्यन पर खिलाना बिदअत है मगर सवाब पहुंचेगा
📕 फतावा रशीदिया,जिल्द 1,सफह 88
ⓩ बिदअत है मगर सवाब पहुंचेगा,अरे वाह जब बिदअत है और तुम्हारे यहां तो हर बिदअत गुमराही है फिर गुमराही पर सवाब कैसे पहुंचेगा और जनाब वो भी सवाब किसे पहुंचा रहे हैं,उन्हें जो मर कर मिटटी में मिल गए मआज़ अल्लाह,मगर ये लिखने से पहले थोड़ याद कर लेते कि आपने अपनी इसी फूहड़ किताब में ये लिख मारा है
16. वास्ते मय्यत के क़ुर्आन मजीद या कल्मा तय्यबह वफात के दूसरे या तीसरे रोज़ पढ़ना बिदअत व मकरूह है शरह में इसकी कोई अस्ल नहीं
📕 फतावा रशीदिया,जिल्द 1,सफह 101
ⓩ अंधेर हो गई खाने का सवाब पहुंचेगा मगर क़ुर्आन का नहीं,क्या अजीब मन्तिक है,और देखिये
17. एक मर्तबा अशरफ अली थानवी ने रशीद अहमद गंगोही से पूछा कि क्या क़ब्र में शज़रह रखना जायज़ है और क्या सवाब पहुंचता है इस पर उन्होंने जवाब दिया हां जायज़ है और सवाब पहुंचता है
📕 तज़किरातुर्रशीद,जिल्द 2,सफह 290
ⓩ इन वहाबियों के गुरू घंटाल इमामों के ईमान का जनाज़ा तो पहले ही उठ चुका है मगर जो बद अक़ीदह अभी जिंदा हैं उनके लिए तौबा का दरवाज़ा खुला हुआ है लिहाज़ा एैसी दोगली पालिसी से तौबा करें और अहले सुन्नत व जमाअत के सच्चे मज़हब पर कायम हो जायें इसी में ईमान की आफियत है,अब मैं नीचे मैं फातिहा देने का तरीक़ा दर्ज कर रहा हूं मगर उससे पहले ये भी जान लीजिये कि जो भी पढ़ा जाये सही पढ़ा जाये ये बात मैं हमेशा ही कहता रहता हूं,और ये सही पढ़ना सिर्फ फातिहा देने की ज़रूरत नहीं है बल्कि नमाज़ तिलावत वज़ायफ सब ही की क़ुबूलियत सही अदायगी पर मौक़ूफ है,मिसाल के तौर पर ये रिवायत पढ़िये
फातिहा कौन दे
18. एक शख्स जो कि बहरा था उसके पड़ोस में कोई बीमार हो गया उसने सोचा कि चलो उसकी इयादत कर लिया जाए फिर सोचा कि मैं वहां क्या करूंगा कि मैं जो बोलूंगा वो तो सुनेगा मगर वो जो बोलेगा मैं तो सुन ही नहीं पाऊंगा,ये सोचकर उसने खुद से ही कुछ सवाल जवाब गढ़ लिए कि मैं कहूंगा कि आप कैसे हैं तो वो ज़रूर कहेगा कि ठीक ही हूं तो मैं शुक्र अदा करूंगा फिर मैं कहूंगा कि आपका इलाज कौन हकीम कर रहा है तो वो किसी का नाम बताएगा तो मैं कहूंगा कि बहुत अच्छा हकीम है उसका इलाज ना छोड़िएगा फिर मैं पूछूंगा कि खाने में क्या ले रहे हैं तो वो ज़रूर कोई हल्का फुल्का खाना बतायेगा तो मैं कहूंगा कि इसी को खाते रहियेगा,ये सब तैयार करके वो बीमार के पास गया और जाकर पूछा कि आप कैसे हैं तो उसने कहा कि मर रहा हूं तो बहरा बोला कि अल्लाह का शुक्र है मरीज़ को बड़ा गुस्सा आया फिर बहरे ने अगला सवाल दाग दिया कि आपका इलाज कौन कर रहा है मरीज़ ने झल्लाते हुए कहा कि हज़रत इज़राईल का तो बहरा बोला कि सुब्हान अल्लाह वो तो बहुत अच्छे हकीम है उनका इलाज जारी रखियेगा फिर बहरे ने सवाल किया कि आप खाने में क्या ले रहे हैं तो उसने गुस्से में कहा कि ज़हर खा रहा हूं तो बहरा बोला कि माशा अल्लाह बहुत अच्छा,हां थोड़ा बहुत खाते रहियेगा अब ये खुश होकर वहां से चल दिया कि मैंने उसकी इयादत करली हालांकि उसको ज़रा भी ख़बर नहीं थी कि वो बीमार को नाराज़ करके लौटा है
📕 हमारे ग़ौसे आज़म,सफह 284
ⓩ इस रिवायत को पढ़कर आप समझे नहीं होंगे मैं समझाता हूं,बअज़ मुसलमान जो कि इल्म से बहुत दूर हैं ना तो कभी मदरसे गए और ना ही कभी कोशिश की कि इल्मे दीन हासिल करें,एैसे लोग नमाज़ पढ़कर तिलावत करके वज़ायफ पढ़कर खुद ही खुश हो लेते हैं कि चलो हमने पढ़ तो लिया हालांकि वो इस बात से बिलकुल बे खबर हैं कि उनके गलत पढ़ने पर उल्टा वो रब को नाराज़ कर चुके हैं,एक सवाल पूछता हूं ये बताइये कि जो बच्चा कभी स्कूल नहीं गया अगर उससे A B C D लिखकर पूछा जाए कि बेटा क्या लिखा है तो क्या वो बता पायेगा,नहीं कभी नहीं,तो फिर हम बग़ैर इल्मे दीन सीखे नमाज़ कैसे पढ़ सकते हैं क़ुर्आन कैसे पढ़ सकते हैं,मेरे अज़ीज़ों मेरी इस बात का गलत मतलब ना निकालें कि फि क्या हम नमाज़ ना पढ़ें या हम क़ुर्आन न पढ़ें,यक़ीनन पढ़ें और ज़रूर पढ़ें,मगर जैसे अल्लाह ने पढ़ने का हुक्म दिया है वैसे पढ़ें अपनी मर्ज़ी से गलत सलत नहीं,इसे बहुत ही क़ायदे से समझिये कि क़ुर्आन पढ़ने के लिए मखरज की अदायगी बहुत बहुत बहुत ज़रूरी है,मसलन ا ع . ح ه . ث س ص ش .غ. ق ك . ز ذ ظ . د ض ये वो हुरूफ़ हैं जिन्हें अगर सही से अदा ना किया जाए तो बजाये फायदे के नुकसान उठाना पड़ सकता है जैसे कि इस्म يا بدوح जो कि कशाइशे रिज़्क़ व हुसूले बरक़त के लिए पढ़ा जाता है अब इसमें बड़ी ح है अब इसको अगर छोटी ه से यानि يا بدوه पढ़ दें तो जिस जगह पढ़ा जायेगा वो जगह वीरान हो जायेगी घर में आग लग जायेगी आबादी बर्बादी में तब्दील हो जायेगी,इसको पढ़ने के बाद शायद आपको अंदाज़ा हो गया हो कि क्यों मुसलमान नमाज़ रोज़ा और इतने वज़ीफे पढ़ने के बाद भी परेशान रहता है क्योंकि ज़्यादातर लोग सही पढ़ते ही नहीं हैं,तो जब सही पढेंगे ही नहीं तो क़ुबूल क्यों होगा और जब क़ुबूल ही ना होगा तो उसका फायदा क्यों कर मिलेगा,इसको युं भी समझिये कि एक कारतूस से आदमी मर सकता है मगर तब जबकि उसे बन्दूक में रखकर चलाया जाए अगर युंही हाथ से किसी को कारतूस खींचकर मारें तो क्या आदमी मरेगा,हरगिज़ नहीं,बस उसी तरह कोई भी वज़ीफा या तिलावत कारतूस है और आपका मुंह बन्दूक,जब बन्दूक सही होगी तो कारतूस भी चलेगी और असर भी करेगी,बेशक नमाज़ रोज़ा हज ज़कात फ़र्ज़ है मगर उन सबको अमल में लाने के लिए इल्मे दीन सीखना भी हर मुसलमान मर्द व औरत पर फर्ज़ है,आज इल्म की कमी ही तो है जो भोला भाला मुसलमान बद अक़ीदों के चंगुल में फंस जाता है अगर उसे अपने अक़ाइद का इल्म होता तो किसी की क्या मजाल थी कि उसे ज़र्रा बराबर भी बहका सकता,हो सकता है कि आपमें बहुत से ऐसे लोग होंगे जो अब मदरसे नहीं जा सकते मगर मेरे दोस्तों अपने घर में किसी हाफ़िज़ को बुलाकर तो पढ़ ही सकते हैं,आज मौक़ा है कुछ भी करने का अगर ये सांस टूट गयी तो फिर सिर्फ हिसाब देना पड़ेगा मौक़ा नहीं मिलेगा,बड़ी बड़ी बात करने से कोई फायदा नहीं है फायदा तो इसमें है कि हम अमल करें अगर मेरी कोई बात कड़वी लगी हो तो माफी चाहूंगा मगर बात है सच्ची कि दीन वही सीखेगा जिसमे सलाहियत होगी,बात भी क्या होती है कहां से कहां चली आई खैर अपने किसी भी नेक अमल मसलन क़ुर्आन की तिलावत या ज़िक्र या वज़ायफ यहां तक कि अपने फरायज़ जैसे नमाज़ रोज़ा हज ज़कात का भी सवाब किसी खास की रूह को पहुंचाना उर्फ़े आम में यही फातिहा कहलाता है,आम मुसलमान की रूह को बख्शा गया अमल फातिहा और किसी बुज़ुर्ग या वली या नबी की बारगाह में यही काम किया जाए तो नज़रों नियाज़ कहलाता है लेकिन अगर हुज़ूर या किसी वली की नज़्र को भी अगर फातिहा कह दिया जाए तो कोई हराम या नाजायज़ नहीं है,और फातिहा पढ़ने में कुछ भी जो याद हो और सही पढ़ सके पढ़े और बख्श दें और जो मआज़ अल्लाह अब तक क़ुर्आन को मख़रज से नहीं सीख पाये हैं वो कुछ ऐसे वज़ायफ पढ़ा करें जिन्हे कच्ची ज़बान वाले भी आसानी से सही पढ़ सकते हैं मसलन या करीमू या अल्लाहु तो वो इसी को अपना वज़ीफ़ा बना लें और फातिहा में 100 बार या 500 बार या 1000 बार पढ़कर इसका और जो कुछ नज़रों नियाज़ पेश हो उन सबका सवाब बख़्श दे बख्शने का तरीका नीचे लिखा है,वैसे तो फातिहा पढ़ने के कई तरीक़े हैं मगर मेरे आलाहज़रत के खानदान से जो तरीका बताया गया वही आपको बताता हूं और ये भी याद रहे कि फातिहा मर्द व औरत में कोई भी दे सकता है
फातिहये रज़विया
दुरुदे ग़ौसिया 7 बार
सूरह फातिहा 1 बार
आयतल कुर्सी 1 बार
सूरह इख्लास 7 बार
फिर दुरुदे ग़ौसिया 3 बार
ⓩ और युं कहें कि “या रब्बे करीम जो कुछ भी मैंने ज़िक्रो अज़कार दुरुदो तिलावत की (या जो कुछ भी नज़रों नियाज़ पेश है) इनमे जो भी कमियां रह गई हों उन्हें अपने हबीब के सदक़े में माफ फरमा कर क़ुबूल फरमा,मौला इन तमाम पर अपने करम के हिसाब से अज्रो सवाब अता फरमा,इस सवाब को सबसे पहले मेरे आक़ा व मौला जनाब अहमदे मुजतबा मुहम्मद मुस्तफा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में पहुंचा,उनके सदक़े व तुफैल से तमाम अम्बियाये किराम,सहाबाये किराम,अहले बैते किराम,औलियाये किराम,शोहदाये किराम,सालेहीने किराम खुसूसन हुज़ूर सय्यदना ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बारगाह में पहुंचा,इन तमाम के सदक़े तुफैल से इसका सवाब तमाम सलासिल के पीराने ओज़ाम खुसूसन हिंदल वली हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बारगाह में पहुंचा,बिलखुसूस सिलसिला आलिया क़ादिरिया बरकातिया रज़विया नूरिया के जितने भी मशायखे किराम हैं खुसूसन आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रज़ियल्लाहु तआला अन्ह की बारगाह में पहुंचा,मौला तमाम के सदक़े व तुफैल से इन तमाम का सवाब खुसूसन ……….. को पहुंचाकर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर आज तक व क़यामत तक जितने भी मोमेनीन मोमिनात गुज़र चुके या गुज़रते जायेंगे उन तमाम की रूहे पाक को पहुंचा” फिर अपनी जायज़ दुआयें करके दुरुदे पाक और कल्मा शरीफ पढ़कर चेहरे पर हाथ फेरें
ⓩ अब फातिहा देने का फायदा क्या है ये भी जान लीजिये,हदीसे पाक में आता है कि मुर्दा कब्र में युं होता है जैसे कि कोई शख्स पानी में डूब रहा हो और मदद के लिए पुकार रहा हो कि कोई उसे बचा ले या बाहर निकाले,मोमिन की दुआयें उसकी तिलावत उसके वज़ायफ वो दर्जा रखते हैं कि उस डूबते हुए को सहारा देने के लिए काफी है,जैसा कि आपने ऊपर पढ़ ही लिया होगा अब रही ये बात की वलियों और नबियों को हमारे ईसाले सवाब की क्या ज़रूरत है तो इसके 2 जवाब हैं पहला तो ये कि
19. आलाहज़रत से किसी ने सवाल किया कि जब अम्बिया व औलिया अल्लाह के महबूब हैं तो उन्हें ईसाले सवाब की क्या ज़रूरत है तो उसके जवाब में आप फरमाते हैं कि “एक मर्तबा हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम गुस्ल फरमा रहे थे कि सोने की बारिश होने लगी आप चादर फैलाकर सोना उठाने लगे,ग़ैब से निदा आई कि ऐ अय्यूब क्या हमने तुझको इससे ज़्यादा ग़नी ना किया तो आप फरमाते हैं कि बेशक तूने मुझे ग़नी किया मगर तेरी बरकत से मुझे किसी वक़्त ग़िना नहीं” मतलब ये कि हमारे ईसाले सवाब की बेशक उनको हाजत नहीं है मगर हमारी दुआओं के बदले मौला उनको जो इनामात और दरजात अता फरमाता है वो ज़रूर उसके ख्वाहिश मंद होते हैं
📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 63
20. और दूसरा ये कि बेशक वलियों या नबियों को हमारे ज़िक्रो वज़ायफ दुरूदो तिलावत की असलन ज़रूरत नहीं मगर हमको तो उनकी नज़रे रहमत की ज़रूरत है,जैसा कि एक हदीसे पाक में है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि मुझपर कसरत से दुरूद पढ़ा करो कि तुम्हारा ये दुरूद मेरी बारगाह में पहुंचा दिया जाता है,अब बताइये हम जैसों का पढ़ा लिखा कुछ औरादो वज़ायफ अगर हमारे आक़ा की बारगाह में या हमारे बुजुर्गों की बारगाह में पहुंचे तो ये हमारे लिए कितने फख्र की बात है कि उनकी बारगाह में हम जैसे बदकारों का भी नाम लिया जाता है,फिर दूसरा जो हमको सवाब मिलता है वो अलग मसलन आपने ये हदीसे पाक भी सुनी होगी कि क़ुर्आन के 1 हर्फ़ पर 10 नेकी है मतलब अगर किसी ने सिर्फ अल्हम्दु ا ل ح م د पढ़ लिया तो उसको 50 नेकियां मिल गयी,अब अगर उसने ये 50 नेकी किसी 1 को बख़्श दी तो जिसको बख्शी उसको 50 नेकी पहुंची और खुद इसको 100 नेकी मिलेगी,अब अगर इसने सिर्फ अपने खानदान वालों का नाम लिया कि फलां फलां को पहुंचे तो जितनों का नाम लिया मसलन 100 लोगों का नाम लिया तो उन सबको तो 50-50 नेकी पहुंचेगी ही मगर खुद इसको 50×100 यानि 5000 नेकियां मिलेगी,युंही अंदाज़ा लगाइये कि करोड़ो अरबों खरबों मुसलमान अब तक फौत हो चुके हैं और होते रहेंगे तो अगर हमने कुल मोमेनीन कुल मोमेनात कहकर सबको बख्श दिया तो अल्लाह अल्लाह न जाने कितनी अरब खरब नेकियां एक छोटे से अमल से हम कमा सकते हैं बल्कि कमाते ही हैं कि जिसका हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते
📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 72