Andhere Me Dil Ke Charagh-e Mohabbat Lyrics
Andhere Me Dil Ke Charage Mohabbat
Ye Kis Ne Jalaaya Sawere Sawere.
Andhere Me Dil Ke Charage Muhabbat
Ye Kis Ne Jalaaya Sawere Sawere
Tasawwur Ke Suraj Ki Ek Ek Kiran Se
Naya Noor Paya Sawere Sawere
Lagan Jiske Deedaar Ki Lag Rahi Thi
Qareeb Aur Aaya Sawere Sawere
Aaa..
Kisi Ghamzada Ne Jo Khwaja Piya Ko
Tadap Kar Bulaya Sawere Sawere
Khazana Muhammad Ka Haathoñ Me Lekar
Wahiñ Unko Paaya Sawere Sawere
Ghalat Hai Ke Baazaar e Ishq o Muhabbat
Kabhi Aashiqoñ Ke Samajhme Na Aaya
Khara Maal Hai To Khare Daam Dega
Aataye Muhammad Hai Zehra Ka Jaaya.
Ghareebo Ke Daata Haiñ Mash’hoor Khwaja
Koi Hind Me Unka Saani Na Paaya
Aaa..
Aqeedat Ki Mandi Ka Bas Raaz Ye Hai
Isha Padh Ke Gar Haajati Ne Lagaya
Ibaadat Ka Sauda Andhere Andhere
Munafa Kamaaya Sawere Sawere
Muqaddas Yuñ Samjhi Gayi Momino Meñ
Saher Ki Tilaawat Saher Ki Ibaadat
Farishte Azaane Saher Sun ke Takseem
Karte Haiñ Bando Ko Qudrat Ki Ne’mat
Namaze Saher Meñ Namazi Ke Sar Pe
Barasti hai Masjid Me Allah Ki Rehmat
Aaa…
Tere Rauzaye Paak Ki Mere Khwaja
Ziyaarat Yuñ Karte Hai Sab Ahl-e Sunnat
Khuda Ne Muhammad ﷺ Ko Me’raj Ki Shab
Falak Par Bulaya Sawere Sawere.
Tasawwur se chehre ke Khwaja piya k
Ujaaloñ se ho kar ke bhar poor chamka
Azaane sahar jab hui saara Ajmer
Nazdeek Kya Door Se Door Chamka
Khade The Jo Rauze Pe Behre Ziyarat
Nigaho Me Unki Naya Noor Chamka.
Aaa…
Khuda Ki Qasam Ye Haqeeqat Hai Sahrayi
Ke Benoor Aankhon Me Bhi Noor Chamka
Tere Dhauley Gumbad Ko Suraj Ki Kirno
Ne Jab Jagmagaaya Sawere Sawere
अनमोल हीरा पाया अजमेर की गली में
आ….
अनमोल हीरा पाया, अजमेर की गली में
हां…
तारीक दिल में ख़्वाजा, की रौशनी तुम्ही ने।
अंधेरे में दिल के, चराग़े मोहव्वत
ये किसने जलाया, सवेरे सवेरे।
अंधेरे में दिल के, चराग़े मोहव्वत
ये किसने जलाया, सवेरे सवेरे
तसव्वुर के सूरज की, इक इक किरन से
नया नूर पाया, सवेरे सवेरे
लगन जिसके दीदार, की लग रही थी
क़रीब और आया, सवेरे सवेरे
आ..
किसी ग़मज़दा ने, जो ख़्वाजा पिया को
तड़प कर बुलाया, सवेरे सवेरे
ख़ज़ाना मोहम्मद का, हाथों में लेकर
वहीं उनको पाया, सवेरे सवेरे।
ग़लत है के बाज़ारे इश्को मोहब्बत
कभी आशिक़ों के, समझ में न आया
खरा माल है तो, खरे दाम देगा
अ़ताए मोहम्मद है, ज़हरा का जाया
ग़रीबों के दाता, हैं मशहूर ख़्वाजा
कोई हिंद में, उनका सानी न पाया
आ….
अ़क़ीदत की मंडी, का बस राज़ ये है
इशा पढ़ के गर, हाजती ने लगाया
इबादत का सौदा, अंधेरे अंधेरे
मुनाफा कमाया, सवेरे सवेरे।
मुक़द्दस यूं समझी गयी मोमिनों में
सहर की तिलावत, सहर की इबादत
फ़रिश्ते आज़ाने, सहर सुनके तक़सीम
करते हैं बंदों को, क़ुदरत की नेअ़मत
नमाज़े सहर में, नमाज़ी के सर पे
बरसती है मस्जिद में, अल्लाह की रहमत
आ…
तेरे रौज़ए पाक की, मेरे ख़्वाजा
ज़्यारत यूं करते हैं, सब कह के सुन्नत
ख़ुदा ने मोहम्मद को, मेअ़्राज की शब
फ़लक पर बुलाया, सवेरे सवेरे।
तसव्वुर से चेहरे के, ख़्वाजा पिया के
उजालों से होकर के, भर पूर चमका
अज़ाने सहर जब हुई, सारा अजमेर
नजदीक क्या, दूर से दूर चमका
खड़े थे जो रौज़े पे, बहरे ज़्यारत
निगाहों में उनकी, नया नूर चमका
आ…
ख़ुदा की क़सम ये, ह़क़ीक़त है सहरायी
के बेनूर आंखों, में भी नूर चमका
तेरे धौले गुम्बद को, सूरज की किरनों
ने जब जगमगाया, सवेरे सवेरे।