SHAB E QADR KI FAZILAT- ALL ABOUT SHAB E QADR VIRTUES OF SHAB E QADR HINDI ENGLISH
بسم الله الرحمان ال رحیم
जिस तरह रमज़ानुल मुबारक को दूसरे महीनों पर फजीलत है इसी तरह उसका आखिरी अशरा पहले दोनों अशरों से बेहतर और ज्यादा बा बरकत है। और लयलतुल कद्र अक्सरो बेश्तर इसी अशरे में होती है। इसलिए रसूलुल्लाह (स.अ.व.) इबादत वगैरह का एहतमाम इस अशरे में और ज्यादा फरमाते थे। कुरआन व हदीस में शबे कद्र की फजीलतें वारिद हुई हैं। इरशादे रब्बानी है- बेशक हमने कुरआन को शबे कद्र में उतारा है। और आपको कुछ मालूम है कि शबे कद्र कैसी चीज है। शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर है। इस रात में फरिश्ते और रूहुल कुदुस अपने परवरदिगार के हुक्म से हर अमरे खैर को लेकर उतरते हैं।
एक रिवायत हजरत अनस (रजि.) से है कि रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने फरमाया जब शबे कद्र होती है तो जिबराईल (अलैयहिस्सलाम) फरिश्तों के झुरमुट में नाजिल होते हैं और हर उस बन्दे के लिए दुआएं रहमत करते हैं जो खड़ा या बैठा अल्लाह के जिक्र व इबादत में मशगूल होता है।
सही मुस्लिम में हजरत इब्ने उम्र (रजि.) रिवायत करते हैं- नबी करीम (सल.) ने फरमाया- रमज़ान के आखरी अशरे की ताक रातों में शबे कद्र को तलाश किया करो और आखरी अशरे की ताक रातें 21, 23, 25, 27, 29 हैं। हजरत आयशा (रजि.) फरमाती हैं कि मैने अर्ज किया या रसूलल्लाह अगर मुझे मालूम हो जाये कि ये शबे कद्र है तो मैं क्या पढ़ूं। आप (सल.) ने फरमाया- ये दुआ पढ़ा करो ‘अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफवा फअफु अन्नी’।
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शबे कद्र की कद्र करें
शबे कद्र की खास अहमियत को समझकर उसकी कद्र करनी चाहिए। उस मुबारक रात में नवाफिल व मुस्तहब्बात और जिकर व अज़कार का खास ऐहतमाम करे।
माहे रमज़ान खास अमल
हदीस में है कि रमज़ान में चार चीजों की कसरत किया करो। दो ऐसी है कि तुम उनके जरिए से रब को राज़ी कर सकते हो और दो चीज़े जिनसे तुम बेनियाज़ नहीं हो। पहली दो बातें जिनके जरिए तुम अपने रब को राज़ी करो वे हैं- 1- लाइलाहा इलल्लाह की गवाही देना। 2- अस्तगफार करना। वो दो चीजें जिसने तुम बेनियाज़ नहीं हो ये हैं- हक तआला से जन्नत का सवाल और दोजख से पनाह।
महरूम न हों
ये रात साल में सिर्फ एक मर्तबा आती है इस रात की बरकतों से जो महरूम रह जाता है यह बड़ी बदसीबी है। सरकारे दो आलम (सल.) ने ऐसे लोगों के बारे में जो इस रात की इबादत से और सआदत से महरूम रह जाता है इरशाद फरमाया कि तुम्हारे पास एक महीना आया जिसमें एक रात है जो शख्स इस रात से महरूम रह जाता है गोया वो हर खैर से महरूम रह जाता है। और उस रात की खैर से वही महरूम रहता है जो हकीकत में महरूम है।
क़द्र वाली रात का महत्वः
(1) इस पवित्र रात में अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम को लोह़ महफूज़ से आकाश दुनिया पर उतारा फिर 23 वर्ष की अवधि में आवयश्कता के अनुसार मुहम्नद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर उतारा गया। जैसा कि अल्लाह तआला का इर्शाद है।
• अल कुरान: “हमने इस (क़ुरआन) को क़द्र वाली रात में अवतरित किया है।……..” – (सुराः ९७ क़द्र)
(2) यह रात अल्लाह तआला के पास बहुत उच्च स्थान रखती है। इसी लिए अल्लाह तआला ने प्रश्न के तरीके से इस रात की महत्वपूर्णता बयान फरमाया है और फिर अल्लाह तआला ने स्वयं ही इस रात की फज़ीलत को बयान फरमाया कि यह एक रात हज़ार महीनों की रात से उत्तम है।
• अल कुरान: “और तुम किया जानो कि क़द्र की रात क्या है ?, क़द्र की रात हज़ार महीनों की रात से ज़्यादा उत्तम है।” – (सुराः ९७ क़द्र)
(3) इस रात में अल्लाह तआला के आदेश से अनगीनत फरिश्ते और जिब्रईल (अलैहि सलाम) आकाश से उतरते है। अल्लाह तआला की रहमतें, अल्लाह की क्षमा ले कर उतरते हैं। इस से भी इस रात की महत्वपूर्णता मालूम होती है। जैसा कि अल्लाह तआला का इर्शाद हैः
• अल कुरान: “फ़रिश्ते और रूह (जिब्रईल अलैहि सलाम) उस में अपने रब्ब की आज्ञा से हर आदेश लेकर उतरते हैं।” – (सुराः ९७ क़द्र)
(4) यह रात बहुत सलामती वाली है। इस रात में अल्लाह की इबादत में ग्रस्त व्यक्ति परेशानियों, ईश्वरीय संकट से सुरक्षित रहते हैं। इस रात की महत्वपूर्ण, विशेषता के बारे में अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम में बयान फरमाया हैः
• अल कुरान: “यह रात पूरी की पूरी सलामती है उषाकाल(सुबहा)। ” – (सुराः ९७ क़द्र)
(5) यह रात बहुत ही पवित्र तथा बरकत वाली हैः इस लिए इस रात में अल्लाह की इबादत की जाए, ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह से दुआ की जाए, अल्लाह का फरमान हैः
• अल कुरान: “हमने इस (क़ुरआन) को बरकत वाली रात में अवतरित किया है।…….. ” – (सुराः ९७ क़द्र)
(6) इस रात में अल्लाह तआला के आदेश से लोगों के नसीबों (भाग्य) को एक वर्ष के लिए दोबारा लिखा जाता है। इस वर्ष किन लोगों को अल्लाह तआला की रहमतें मिलेंगी ? यह वर्ष अल्लाह की क्षमा का लाभ कौन लोग उठाएंगे ?, इस वर्ष कौन लोग अभागी होंगे ?, किस को इस वर्ष संतान जन्म लेगा और किस की मृत्यु होगी ? तो जो व्यक्ति इस रात को इबादतों में बिताएगा, अल्लाह से दुआ और प्रार्थनाओं में गुज़ारेगा, बेशक उस के लिए यह रात बहुत महत्वपूर्ण होगी ।
(7) यह रात पापों, गुनाहों, गलतियों से मुक्ति और छुटकारे की रात है। मानव अपनी अप्राधों से मुक्ति के लिए अल्लाह से माफी मांगे, अल्लाह बहुत ज़्यादा माफ करने वाला, क्षमा करने वाला है। खास कर इस रात में लम्बी लम्बी नमाज़े पढ़ा जाए, अधिक से अधिक अल्लाह से अपने पापों, गलतियों पर माफी मांगा जाए, अल्लाह तआला बहुत माफ करने वाला, क्षमा करने वाला है। जैसा कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन हैः
• हदीस: “जो व्यक्ति शबे क़द्र में अल्लाह पर विश्वास तथा पुण्य की आशा करते हुए रातों को क़ियाम करेगा, उसके पिछ्ले सम्पूर्ण पाप क्षमा कर दिये जाएंगे।” – (बुखारी तथा मुस्लिम)
यह अल्लाह की ओर से एक प्रदान रात है जिस की महानता के बारे में कुछ बातें बयान की जा चुकी हैं। इसी शबे क़द्र को तलाश ने का आदेश प्रिय रसूल(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने कथन से दिया है। “जैसा कि आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) वर्णन करती है –
• हदीस: “रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” कद्र वाली रात को रमज़ान महीने के अन्तिम दस ताक रातों में तलाशों ” – (बुखारी तथा मुस्लिम)
प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने शबे क़द्र को अन्तिम दस ताक वाली (21, 23, 25,27, 29) रातों में तलाशने का आदेश दिया है। शबे क़द्र के बारे में जितनी भी हदीस की रिवायतें आइ हैं। सब सही बुखारी, सही मुस्लिम और सही सनद से वर्णन हैं। इस लिए हदीस के विद्ववानों ने कहा है कि सब हदीसों को पढ़ने के बाद मालूम होता है कि शबे क़द्र हर वर्ष विभिन्न रातों में आती हैं। कभी 21 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 23 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 25 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 27 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 29 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती और यही बात सही मालूम होता है। इस लिए हम इन पाँच बेजोड़ वाली रातों में शबे क़द्र को तलाशें और बेशुमार अज्रो सवाब के ह़क़्दार बन जाए।
शबे क़द्र की निशानीः
प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस रात की कुछ निशानी बयान फरमाया है। जिस के माध्यम से इस महत्वपूर्ण रात को पहचाना जा सकता है।
(1) यह रात बहुत रोशनी वाली होगी, आकाश प्रकाशित होगा, इस रात में न तो बहुत गरमी होगी और न ही सर्दी होगी बल्कि वातावरण अच्छा होगा, उचित होगा। जैसा कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने निशानी बतायी है, जिसे सहाबी वासिला बिन अस्क़अ वर्णन करते है कि –
• हदीस: रसूल ने फरमायाः “शबे क़द्र रोशनी वाली रात होती है, न ज़्यादा गर्मी और न ज़्यादा ठंढ़ी और वातावरण संतुलित होता है और सितारे को शैतान के पीछे नही भेजा जाता।” – (तब्रानी)
(2) यह रात बहुत संतुलित वाली रात होगी। वातावरण बहुत अच्छा होगा, न ही गर्मी और न ही ठंडी होगी। हदीस रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इसी बात को स्पष्ट करती है –
• हदीस: “शबे क़द्र वातावरण संतुलित रात होती है, न ज़्यादा गर्मी और न ज़्यादा ठंढ़ी और उस रात के सुबह का सुर्य जब निकलता है तो लालपन धिमा होता है ।” – (सही- इब्नि खुज़ेमा तथा मुस्नद त़यालसी)
(3) शबे क़द्र के सुबह का सुर्य जब निकलता है, तो रोशनी धिमी होती है, सुर्य के रोशनी में किरण न होता है । जैसा कि उबइ बिन कअब वर्णन करते हैं कि –
• हदीस: “रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) ने फरमायाः उस रात के सुबह का सुर्य जब निकलता है, तो रोशनी में किरण नही होता है।” – (सही मुस्लिम)
शबे क़द्र की रात इबादत करे
हक़ीक़त तो यह है कि इन्सान इन रातों की निशानियों का परिचय कर पाए या न कर पाए बस वह अल्लाह की इबादतों, ज़िक्रो-अज़्कार, दुआ और क़ुरआन की तिलावत, क़ुरआन पर गम्भीरता से विचार किरे । इख्लास के साथ, केवल अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए अच्छे तरीक़े से अल्लाह की इबादत करे, प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की इताअत करे, और अपनी क्षमता के अनुसार अल्लाह की खूब इबादत करे और शबे क़द्र में यह दुआ अधिक से अधिक करे, अधिक से अधिक अल्लाह से अपने पापों, गलतियों पर माफी मांगा जाए। जैसा कि –
• हदीस: आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि, मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रश्न किया कि यदि मैं क़द्र की रात को पा लूँ तो क्या दुआ करू, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः “अल्लाहुम्मा इन्नक अफुव्वुन करीमुन, तू हिब्बुल-अफ्व, फअफु अन्नी।” अर्थः ‘ऐ अल्लाह! निःसन्देह तू माफ करने वाला है, माफ करने को पसन्द फरमाता, तू मेरे गुनाहों को माफ कर दे।”
अल्लाह हमें और आप को इस महीने में ज्यादा से ज़्यादा भलाइ के काम, लोगों के कल्याण के काम, अल्लाह की इबादत तथा अराधना की शक्ति प्रदान करे और हमारे गुनाहों, पापों, गलतियों को अपने दया तथा कृपा से क्षमा करे। आमीन
VIRTUES OF SHAB E QADR
Besides fasting and the Taraweeh prayer, the one other thing Ramadan is most known for is the Layla tul Qadr. It is the blessed night in the last ten days of Ramadan, and every good deed and act of worship committed during this night gets rewarded with an exponential increase. Hence, every Muslim tries to catch this night and do acts of righteousness in it.
AL QURAN: “Verily, We have sent it (this Quran) down in the night of Al-Qadr (Decree).” (97:1)
From this ayah of the Quran, it is more than clear that perhaps the biggest virtue associated with Laylatul Qadr is that on this night Allah Almighty bestowed the Quran upon humanity, which is perhaps the biggest gift that Allah has sent upon humanity. Therefore, if a Muslim is to celebrate the Night for any reason, the biggest one can be perhaps the fact that Allah has sent down His biggest gift upon Prophet Muhammad (PBUH) on this night, hence it ought to be celebrated for this very gift. There can be many ways you can celebrate it, however, the ultimate option would be to start learning to read and understand the Holy Quran from this very blessed night.
AL QURAN: “The night of Al-Qadr (Decree) is better than a thousand months (i.e. worshipping Allah in that night is better than worshipping Him a thousand months, i.e. 83 years and 4 months).” (97:3)
Tin this ayah of the Quran, Allah Almighty shows the stature and sanctity the Laylatul Qadr enjoys over the rest of the nights of the year. Moreover, the ayah also tells us that the reward or the effectiveness of praying on this night is better than prayers in a thousand months. Ergo, every Muslim must try offering as much prayer on this night as possible to receive an uncountable and extensive reward.
AL HADEESH:“Whoever establishes Salah on the night of Qadr out of sincere faith and hoping for a reward from Allah, all his previous sins will be forgiven.” (Bukhari)
This hadith again emphasizes the great virtues of Laylatul Qadr. This hadith tells us that this Night is the best option for a person to seek forgiveness for previous sins. All a Muslim has to do is be sincere at heart and seek forgiveness from Allah, which He will grant on this night. Therefore, Laylatul Qadr can best be utilized as a means of seeking forgiveness.
There is evidence that the night comes on the last ten days of Ramadan, specifically on the odd-numbered nights. In a report by Bukhari, our Prophet said, “Seek it on the odd nights of the last ten days of Ramadan.” In another incident, The Prophet said, “Seek the night in the last ten days, and if any of you is weak, or can’t observe it, he should not miss the remaining seven days.” In yet another incident, Rasulullah stated, “Seek it on the 29th; it may be on the 27th or the 25th.” Imam Ibn Hajr in his book, ‘Fathul Bari,’ concurred, “I accept the ruling that the night occurs on the odd nights of the last ten days of Ramadhan, namely the 21st, 23rd, 25th, 27th and/or 29th.”
The fact remains that still no one knows for sure which night is the Night of Power, in any given year. It seems that the night shifts and rotates to different nights from one year to another. It may occur on the 29th in one year, while the next year it will be on the 27th, while the following year it may fall on the 25th. The only consensus is that it will fall in the final 10 days of Ramadhan.
The signs by which Laylat al-Qadr is known
The first sign: it was reported in Saheeh Muslim from the hadeeth of Ubayy ibn Ka’b (may Allaah be pleased with him) that the Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) announced that one of its signs was that when the sun rose on the following morning, it had no (visible) rays.
(Muslim, 762).
The second sign: it was reported from the hadeeth of Ibn ‘Abbaas narrated by Ibn Khuzaimah, and by al-Tayaalisi in his Musnad, with a saheeh isnaad, that the Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) said: “Laylat al-Qadr is a pleasant night, neither hot nor cold, and the following day the sun rises red and weak.”
(Saheeh Ibn Khuzaymah, 2912; Musnad al-Tayaalisi).
The third sign: it was reported by al-Tabaraani with a hasan isnaad from the hadeeth of Waathilah ibn al-Asqa’ (may Allaah be pleased with him) that the Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) said: “Laylat al-Qadr is a bright night, neither hot nor cold, in which no meteors are seen.”
(Narrated by al-Tabaraani in al-Kabeer. See Majma’ al-Zawaa’id, 3/179; Musnad Ahmad).
AL HADEESH:
“O Messenger of Allah! (sallAllahu `alayhi wa sallam), If I knew which night is Laylat ul-Qadr, what should I say during it?” Noble Prophet (SallAllaahu Alayhi Wa sallam) advised her to recite:
“Allahumma innaka `afuwwun tuh.ibbul `afwa fa`fu `annee ”Translation: O Allah! You are forgiving, and you love forgiveness. So forgive me. (Tirmidhi)
(Wallahu Wa A’alam – Allah SWT is the Best Knower.)