ZIKRE NABI KI JAAN SE KHUSHBOO NAHI GAI NAAT LYRICS
Naat lyrics
Zikre nabi ki jaan se khushboo nahi gai
Eik jaan e kiya zubaan se khushboo nahi gai
Sarkaar ke pasine ka hai ye bhi moujeza hai (2)
Phoolo ke qaandan se khushboo nahi gai
Asra ki raat sidra thak aaqa ke saath the (2)
Jibreel ki udaan se khushboo nahi gai
Sajti thi jisme naat e mohammed ki mehfile (2)
Basti ke us makaan se khushboo nahi gai
Mheraaj e mustafai ko sadya guzar gai (2)
Ab thak bhi aasmaan se khushboo nahi gai
Jab se durood pardne ka chaska laga use (2)
MASROOR ki zubaan se khushboo nahi gai
The fragrance did not diminish from the mention of the Prophet’s soul
Even a soulless tongue could not capture the fragrance
The sweat of the Prophet is also a miracle (2)
No flower’s bud could emit such fragrance
During the night journey of Isra and Mi’raj with the beloved (2)
Even the flight of Gabriel could not emit such fragrance
The gatherings of Prophet Muhammad’s praise that used to be adorned (2)
No house in the neighborhood could emit such fragrance
The ascension of Mustafa (Prophet Muhammad) was a swift journey (2)
Even the heavens could not emit such fragrance
Since becoming addicted to reciting durood (salutations) upon him (2)
No tongue of Masroor (lover of the Prophet) could emit such fragrance.
(तक़लीद का सबूत आयाते क़ुरआनिया और अह़ादीस व तफ़्सीर से)
🌹बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम🌹
तर्जमा: हमको सीधा रास्ता चला उनका रास्ता जिन पर तू ने एहसान किया।
📖सूरह फ़ातिहा’ आयत_5/6)
✍कहिए सीधे रास्ते के बाद ये कहने की क्या ज़रूरत है उनके जिन पर तू ने एहसान किया।
इसका साफ़ मतलब ये है कि सीधे रास्ते को नहीं समझ सकोगे उनके नक़्शे क़दम पर चलो जिन पर मेरा एहसान है? ये तक़लीद की तरफ खुला इशारा है।
हजरत इमामे आ’ज़म अबू ह़नीफ़ा रहमतुल्लाहि तआ़ला अ़लैहि’ भी उन लोगों में से हैं जिन पर ख़ुदा ने बे पनाह एहसान फ़रमाया।
शैखैन ने हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु’ से और तबरानी ने हज़रत इब्ने मस्ऊ़द रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु’ से रिवायत की है की रसूलुल्लाह ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया है_لو کان العلم عندالشریا और अबू नईम की रिवायत में है: या’नी ईमान या इल्म अगर सुरय्या सितारे पर भी होगा तो अहले फारस में से एक शख़्स उसको ले आएगा।
📗मुस्नद इमाम अहमद बिन हम्बल’ हिस्सा-2, पेज़ 297)
📘 बुख़ारी शरीफ़’ हिस्सा-2, किताबुत तफसीर बाब कौले व आखरीन मिन्हुम म, पेज़ 727)
☝और अल्फ़ाज़ मुस्नद अहमद बिन हम्बल के हैं…?
✍मुहददेसीन की एक जमाअ़त का ख़्याल इस हदीस में हज़रत इमाम आ’ज़म आबू ह़नीफ़ा रहमतुल्लाहि तआ़ला अ़लैहि’ की तरफ़ इशारा है।
क्योंकि आप नस्ल के एतिबार से फारसी थे और अहले फारस में आपकी मिस्ल कोई आलिम व फक़ीह न गुज़रा।
और इमाम आ’ज़म अबु ह़नीफ़ा रहमतुल्लाहि तआ़ला अ़लैहि’ की शाने मक़ाम व मर्तबा तो ये है कि हज़रत इमाम शाफेई रहमतुल्लाहि अ़लैहि’ भी जब उनके मज़ार शरीफ़ पर हाजरी देने आए तो वहाँ इमाम साहब के मस्लक के मुताबिक़ नमाज़ अदा फ़रमाई? बिस्मिल्लाह आहिस्ता पढ़ी, रफअ़ यदैन न किया, फजर की नमाज़ में दुआए क़नूत न पढ़ी।
📕खैरूतुल हिसान लिल इमाम इब्ने हजर मक्की, अल इन्साफ़ लिलशाह वली मोहदिसे देहलवी’ पेज़ 28)
☝इस ह़िकायत से ये भी मा’लूम हुआ के चारों इमामों में बावजूद फुरोई मसाईल में इज्तेहादी एख्तेलाफ के एक दूसरे से नफ़रत न थी बल्के अदब व एहतेराम किया करते थे और बेशक चारों मस्लक हक़ हैं।
🕋तर्जमा: इताअ़त करो अल्लाह की और इताअत करो रसूल की और अपने में से हुक्म वालों की।
📖सूर: निसा’ आयत_59)
✍ग़ैर-मुक़ल्लिदों! बताइए कि ये अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त और उसके रसूल ﷺ की इताअ़त के बाद ये किसी और की इताअ़त का हुक्म क़ुरआने करीम में क्यों है।
आपका वोह क़ौल कहाँ गया के हमें क़ुरआन व हदीस के एलावा और किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है।
शायद आप ये कहें के हुक्म वालों से सलातीने इस्लाम मुराद हैं।
तो वाज़ेह रहे की सलातीन का मर्तबा अहले इ़ल्म के बाद है क्योंकि सुल्तान भी उलमा से पूछ कर ही फैसले करेगा और उनके हुक्म पर उसे भी चलना पड़ेगा।
तभी वह इस्लाम का सुल्तान कहलाएगा और सुल्तान भी तो न ख़ुदा है न रसूल वह खुदा और रसूल के एलावा ही तो है या वह आपका ख़ुदा व रसूल है “मुआजल्लाहि रब्बिल आलामीन।
🕋तर्जमा: ऐ लोगो! इल्म वालों से पूछो अगर तुम न जानते हो।
📖सूर: नहल’ आयत_43)
☝इस आयत में इ़ल्म वालों की तरफ़ लोगों की रग़बत दिलाई गई, और उनकी तक़लीद का हुक्म दिया गया है और हज़रत इमाम आ’ज़म अबु ह़नीफ़ा रहमतुल्लाहि तआ़ला अ़लैहि’ से बढ़कर इ़ल्म वाला उनके बाद कोई पैदा नहीं हुआ।
🕋तर्जमा: मेरी तरफ़ रूजुअ लाने वालों की इत्तेबा करो।
📖सूर: लुक़मान’ आयत_15)
🕋तर्जमा: तो क्यों न होगा कि उनके हर गिरोह में से एक जमाअ़त निकले के दीन की समझ हासिल करें और वापस आकर अपनी क़ौम को डर सुनाएँ इस उम्मीद पर के वोह बचें।
📖सूर: तौबा’ आयत_122)
☝इस आयत से मालूम हुआ के हर शख़्स पर मुज्ताहिद बनना जरूरी नहीं बल्के बाज़ तो फक़ीह बनें और बाज़ उनकी तक़लीद करें।
🕋तर्जमा: जिस दिन हम हर जमाअ़त को उसके इमाम के साथ बुलाएँगे।
📖सूर: बनी इसराईल’ आयत_71)
☝इस आयत की तफ़्सीर में “तफ़्सीर रूहुल बयान में लिखा है: ये इमाम दीनी पेशवा है तो क़यामत में कहा जाएगा ऐ हनफि, ऐ शाफेई।
🕋तर्जमा: और जो मोमिनों के ख़िलाफ़ राह चले हम उसको उसके रूख पर फेर देंगे, और जहन्नम में पहुँचाएँगे और वोह बुरा ठिकाना है।
📖सूर: निसा’ आयत_115)
✍ग़ैर-मुक़ल्लिदों! बताईए ये ख़ुदा और रसूल ﷺ के ज़िक्र के साथ मो’मेनीन के ज़िक्र की क्या वजह है और फी ज़माना आम मो’मेनीन के खिलाफ कौन चल रहा है।
🕋तर्जमा: ऐ ईमान वालों! अल्लाह से डरो और सच्चों के साथ रहो।
📖सूर: तौबा’ आयत_119)
✍और इसमें कोई शक नहीं के चारों इमाम सच्चे हैं।
लेहाज़ा जो उनके साथ है उनमें से किसी का मुक़ल्लिद है वोह सादक़ीन और सच्चों के साथ है।
🌹ह़दीस: मुस्लिम शरीफ़’ हिस्सा-1, बाब बयान इन्नददीन अन्नसीहत” में हज़रत तमीम दारी रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु’ से मरवी है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया के दीन खैरख्वाही है अल्लाह और उसके रसूल के लिए और उसकी किताब के लिए और इमामों के लिए और आम मो’मेनीन के लिए।
📗सही मुस्लिम शरीफ़’जिल्द-1, पेज़ नं 54)
☝इस हदीस की शरह में इमाम नववी रहमतुल्लाहि अ़लैहि’ फ़रमाते हैं: ये ह़दीस उन इमामों को भी शामिल है जो ओलमाए दीन हैं और उलमा की खैरख्वाही ये है कि उनकी रिवायत कर्दा अह़ादीस को क़ुबूल किया जाए और अह़कामे दीनया में उनकी तक़लीद की जाए।
🌹ह़दीस: तफ़्सीर दुर्रे मन्सूर” में हज़रत अनस इब्ने मालिक रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु’ से मरवी है: रसूले पाक ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया: के आदमी नमाज़ व रोज़ा व हज अदा करने और जेहाद करने के बावजूद मुनाफ़िक़ होता है।
अर्ज़ किया गया क्यों।🤔
फ़रमाया: अपने इमाम पर ता’नाज़नी की वजह से इमाम कौन है? फ़रमाया: रब ने فاسنلوا الایۃ या’नी इमाम से मुराद अहले इ़ल्म हैं।
🌹ह़दीस: मिश्कात शरीफ़’ बाबुल फराईज पेज़ 264) में बरिवायत बुखारी है की हज़रत अबु मूसा अश्-अ़री रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु’ ने हज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने मस्ऊ़द रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु’ के बारे में फ़रमाया के لاتسنلوانی مادام ھذا الحبرفیکم या’नी जब तक तुममें इब्ने मस्ऊ़द जैसा ज़ी इ़ल्म मौजूद है तुम मुझसे कुछ न पूछो।
✍तक़लीद शख़्सी का इससे बढ़कर सबूत और क्या होगा।
हज़रत अबू मूसा अश्-अ़री रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु’ ने ये नहीं कहा के सिर्फ क़ुरआन व हदीस देखो ये भी न कहा के जिससे चाहो उससे पूछो बल्के फ़रमाया के सिर्फ़ इब्ने मस्ऊ़द रज़ि०) से पूछो 👉यही तो तक़लीदे शख़्सी का मफहूम है।
🌹ह़दीस: मिश्कात शरीफ़’ पेज़ 35) बरिवायत तिर्मिज़ी शरीफ़’ अबू दाऊद, इब्ने माजा, बैहक़ी की हदीस है: अल्लाह जलालुहू’ उस बन्दे को खुश रखे जिसने मेरी हदीस अच्छी तरह याद रखी और दूसरों तक पहुँचाई और बहुत से लोग वह हैं कि आयत व अह़ादीस उन्हें याद हैं लेकिन वह उन्हें पूरी तरह समझते नहीं, और बहुत से लोग अपने से ज़्यादा समझने वालों को पहुँचा देते हैं।
👉ग़ैर-मुक़ल्लिदों! ठण्डे दिलसे सोचिए और बताईए हुज़ूर अकरम ﷺ का ये फ़रमाने आलीशान क्या इस बात का सबूत नहीं है कि अह़ादीस को याद कर लेने रट लेने और उनकी गहराई तक पहुँचने में बड़ा फ़र्क है।
अगर आपके दिल में जरा भी ख़ौफ़े ख़ुदा रह गया है तो हमारी पेशकर्दा इस हदीस को पढ़कर आप ज़रूर इक़रार करेंगे के अह़ादीस को समझना हर शख़्स के बस की बात नहीं और बिना अक़्ल पर ज़ोर दिए ये बात भी वाज़ेह है कि जो खुद नहीं समझ सकते वह यक़ीनन अहले इ़ल्म व फ़िक़ह की तक़लीद करेंगे? न के यूँ ही अन्धेरे में लाठी चलाएँगे।
तअ़ज्जुब की बात है की जमाअ़ते अहले हदीस का हर फ़र्द तो ख़्वाह वो दुकानदार हो या किसान खुद को मुह़द्दिस समझता है और माँ के पेट से मुज्ताहिद पैदा होता है और सह़ाबी-ए रसूल सय्यिदुना अबु मूसा अश्-अ़री रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु’ फ़रमाते हैं के मुझसे न मा’लूम करो बल्के जो मस्अ़ला पूछना हो वो इब्ने मस्ऊ़द रज़ि०) से पूछो।
🌹ह़दीस: बुखारी व मुस्लिम शरीफ़’ से मरवी मिश्कात शरीफ़’ किताबुल इ़ल्म, पेज़ 32) पर हदीस है: हुज़ूर पुरनूर ﷺ फ़रमाते हैं के अल्लाह तआ़ला’ जिसके साथ खैर का इरादा फ़रमाता है उसको दीन के मुआमले में तफक्क़ोह और सूझ बूझ अता फ़रमाता है और देता है ख़ुदा, लेकिन बाँटने वाला मैं हूँ।
☝ये ह़दीस भी खुले तौर पर बता रही है की दीन में सूझ बूझ हर एक को नहीं मिलती बल्के वह खास नेअमते इलाहिया है जो अपने खास बन्दों को बवसीला नबी करीम ﷺ अता फ़रमाता है हर कस व नाकस को नहीं मिलती।
लेहाज़ा उनके लिए तक़लीद के सिवा चाराए कार नहीं।
📗तक़लीदे शख़्सी ज़रूरी है’ पेज़ नं 65/72)
✒मुक़ल्लिद ग़ैर है जो आज भी फ़ितने उठाते हैं,
गलत कल भी बताते थे गलत अब भी बताते हैं।
बताई राह जो हज़रत ने हम उससे गुजरते हैं,
ख़ुदा का फ़ज़ल है हम आपकी तक़लीद करते हैं।
इमाम अपने हैं वोह तक़दीर वाले आदमी हैं हम,
हमें हैं फ़ख़्र ऐ तौह़िद उनके मुक्तादी हैं हम।
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اہلِ بیتِ نبی کی ثنا
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نکلے شبیر کرب و بلا کے لیے
سب لُٹانے خدا کی رضا کے لیے
ابنِ حیدر نے سب کچھ فدا کر دیا
دینِ اسلام! تیری بقا کے لیے
پرچمِ دینِ اسلام کیسے جھکے
کر گئے جب وہ اونچا سدا کے لیے
پیدا ہو جاتے اِک پل میں لاکھوں فرات
ہاتھ اٹھاتے اگَر وہ دعا کے لیے
گَر نہ پیدا ہوئے ہوتے عباس تو
روتا رہتا زمانہ وفا کے لیے
تجھ کو توصیفؔ! پیدا ہی رب نے کیا
اہلِ بیتِ نبی کی ثنا کے لیے
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✍از۔ توصیف رضا رضوی باتھ اصلی سیتا مڑھی بِہار انڈیا
+91 9594346926