SAR SUE ROUZA JHUKA PHIR TUJHKO KYA NAAT LYRICS
Sar Sue Rouza Jhuka Phir Tujhko Kya
Dil Tha Sajid Najdiya Phir Tujhko Kya
Baith-te Uth-te Madad Ke Waaste
YA RASOOLALLAH (ﷺ) Kaha Phir Tujhko Kya
Ya Garaz Se Choot Ke Mahje Zikr Ko
Naam E Paak Unka Japa Phir Tujhko Kya
Bekhudi Me Sajda E Darr Ya Tawaaf
Jo Kiya Achha Kiya Phir Tujhko Kya
Unko Tamlee Ke Malikul Mulq Se
Maalik E A’alam Kaha Phir Tujhko Kya
Unke Naam E Paak Par Dil Jaano Maal
Najdiya Sab T(a)j diya Phir Tujhko Kya
Ya Ibadi Kehke Humko Shah Ne
Apna Banda Kar Liya Phir Tujhko Kya
Dev Ke Bando Se Kab Hai Ye Khitaab
Tu Na Unka Hai Na Tha Phir Tujhko Kya
La Ya’udun Aage Hoga Bhi Nahi
Tu Alag Hai Daaima Phir Tujhko Kya
Dashte Gardo Peshe Taiba Ka Adab
Makka Sa Tha Ya Siwa Phir Tujhko Kya
Najdi Marta Hai Ke Kyu Ta’azeem Ki
Ye Hamara Deen Tha Phir Tujhko Kya
Dev Tujhse Khush Hai Phir Hum Kya Kare
Humse Hai Raazi Khuda Phir Tujhko Kya
Dev Ke Bando Se Humko Kya Garaz
Hum Hai Abad E Mustafa Phir Tujhko Kya
Teri Dohzakh Se To Kuch Cheena Nahi
Khuld Me Pohcha Raza Phir Tujhko Kya
============= Hindi =======================
सर सुए रौज़ा झुका फिर तुझ को क्या,
दिल था साजिद नजदिया फिर तुझ को क्या।
बैठते उठते मदद के वास्ते,
या रसूलल्लाह (ﷺ) कहा फिर तुझ को क्या।
या गरज़ से छूट के महज़ ज़िक्र को,
नाम ए पाक उनका जपा फिर तुझ को क्या।
बेखुदी में सज्दा ए दर या तवाफ़,
जो किया अच्छा किया फिर तुझ को क्या।
उन को तमलीक ए मलिकुल से,
मालिक ए आलम कहा फिर तुझ को क्या।
उन के नाम ए पाक पर दिल जानो माल़,
नजदियां सब तज दिया फिर तुझ को क्या।
या इबादी कह के हमको शाह ने,
अपना बंदा कर लिया फिर तुझ को क्या।
देव के बंदों से कब है ये खिताब,
तु न उनका था ना है फिर तुझ को क्या।
ला–यऊदुन आगे होगा भी नहीं,
तु अलग है दाइमा फिर तुझ को क्या।
दश्ते गिर्दो पेशे तैयबा का अदब,
मक्का सा था या सिवा फिर तुझ को क्या।
नज्दी मरता है की क्यूं ताज़ीम की,
ये हमारा दिन था फिर तुझ को क्या।
देव तुझ से खुश है फिर है फिर हम क्या करे,
हमसे राज़ी है खुदा फिर तुझ को क्या।
देव के बंदों से हमको क्या गरज़,
हम है अब्दे मुस्तफा (ﷺ) फिर तुझ को क्या।
तेरी दोजख से तो कुछ छीना नही,
खुल्द में पहुंचा रज़ा फिर तुझ को क्या।
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سر سوئے روضہ جھکا پھر تجھ کو کیا
دل تھا ساجد نَجْدِیا پھر تجھ کو کیا
بیٹھتے اُٹھتے مدد کے واسطے
یا رسول اللہ کہا پھر تجھ کو کیا
یا غَرض سے چھٹ کے محض ذکر کو
نامِ پاک اُن کا جپا پھر تجھ کو کیا
بے خودی میں سجدۂ در یا طواف
جو کیا اچھا کیا پھر تجھ کو کیا
ان کو تَمْلِیک مَلِیْکُ الْمُلْکْ سے
مالکِ عالَم کہا پھر تجھ کو کیا
ان کے نامِ پاک پر دل جان و مال
نَجْدِیا سب تج دیا پھر تجھ کو کیا
یٰعِبَادِی کہہ کے ہم کو شاہ نے
اپنا بندہ کر لیا پھر تجھ کو کیا
دیو کے بندوں سے کب ہے یہ خطاب
تو نہ اُن کا ہے نہ تھا پھر تجھ کو کیا
لَا یَعُوْدُوْنْ آگے ہو گا بھی نہیں
تو الگ ہے دائما پھر تجھ کو کیا
دشتِ گِرد و پیشِ طَیبہ کا ادب
مکہ سا تھا یا سِوا پھر تجھ کو کیا
نَجدی مرتا ہے کہ کیوں تعظیم کی
یہ ہمارا دین تھا پھر تجھ کو کیا
دیو تجھ سے خوش ہے پھر ہم کیاکریں
ہم سے راضی ہے خدا پھر تجھ کو کیا
دیو کے بندوں سے ہم کو کیا غرض
ہم ہیں عبدِ مُصطَفیٰ پھر تجھ کو کیا
تیری دوزخ سے تو کچھ چھینا نہیں
خُلد میں پہنچا رضاؔ پھر تجھ کو کیا
19. आलाहज़रत से किसी ने सवाल किया कि जब अम्बिया व औलिया अल्लाह के महबूब हैं तो उन्हें ईसाले सवाब की क्या ज़रूरत है तो उसके जवाब में आप फरमाते हैं कि “एक मर्तबा हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम गुस्ल फरमा रहे थे कि सोने की बारिश होने लगी आप चादर फैलाकर सोना उठाने लगे,ग़ैब से निदा आई कि ऐ अय्यूब क्या हमने तुझको इससे ज़्यादा ग़नी ना किया तो आप फरमाते हैं कि बेशक तूने मुझे ग़नी किया मगर तेरी बरकत से मुझे किसी वक़्त ग़िना नहीं” मतलब ये कि हमारे ईसाले सवाब की बेशक उनको हाजत नहीं है मगर हमारी दुआओं के बदले मौला उनको जो इनामात और दरजात अता फरमाता है वो ज़रूर उसके ख्वाहिश मंद होते हैं
📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 63
20. और दूसरा ये कि बेशक वलियों या नबियों को हमारे ज़िक्रो वज़ायफ दुरूदो तिलावत की असलन ज़रूरत नहीं मगर हमको तो उनकी नज़रे रहमत की ज़रूरत है,जैसा कि एक हदीसे पाक में है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि मुझपर कसरत से दुरूद पढ़ा करो कि तुम्हारा ये दुरूद मेरी बारगाह में पहुंचा दिया जाता है,अब बताइये हम जैसों का पढ़ा लिखा कुछ औरादो वज़ायफ अगर हमारे आक़ा की बारगाह में या हमारे बुजुर्गों की बारगाह में पहुंचे तो ये हमारे लिए कितने फख्र की बात है कि उनकी बारगाह में हम जैसे बदकारों का भी नाम लिया जाता है,फिर दूसरा जो हमको सवाब मिलता है वो अलग मसलन आपने ये हदीसे पाक भी सुनी होगी कि क़ुर्आन के 1 हर्फ़ पर 10 नेकी है मतलब अगर किसी ने सिर्फ अल्हम्दु ا ل ح م د पढ़ लिया तो उसको 50 नेकियां मिल गयी,अब अगर उसने ये 50 नेकी किसी 1 को बख़्श दी तो जिसको बख्शी उसको 50 नेकी पहुंची और खुद इसको 100 नेकी मिलेगी,अब अगर इसने सिर्फ अपने खानदान वालों का नाम लिया कि फलां फलां को पहुंचे तो जितनों का नाम लिया मसलन 100 लोगों का नाम लिया तो उन सबको तो 50-50 नेकी पहुंचेगी ही मगर खुद इसको 50×100 यानि 5000 नेकियां मिलेगी,युंही अंदाज़ा लगाइये कि करोड़ो अरबों खरबों मुसलमान अब तक फौत हो चुके हैं और होते रहेंगे तो अगर हमने कुल मोमेनीन कुल मोमेनात कहकर सबको बख्श दिया तो अल्लाह अल्लाह न जाने कितनी अरब खरब नेकियां एक छोटे से अमल से हम कमा सकते हैं बल्कि कमाते ही हैं कि जिसका हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते
📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 72