मंज़िल मिली मुराद मिली मुद्द’आ मिला
सब कुछ मुझे मिला जो तेरा नक़्श-ए-पा मिला
जब दूर तक न कोई फ़क़ीर आश्ना मिला
तेरा नियाज़ मंद तेरे दर से जा मिला
मुझ में हर रंग अब तुम्हारा है
अब तो कह दो कि तू हमारा है
‘आलम-ए-शौक़ में न जाने क्यूँ
मैं ने हर-दम तुम्हें पुकारा है
तू तो सब ही के पास है मौजूद
कौन कहता है तू हमारा है
तेरे सदक़े में ये तमाम जहाँ
अपनी ठोकर पे मैं ने मारा है
राज़ को राज़ क्यूँ समझते हो
राज़ दुनिया का आश्कारा है
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