Evergreen Shayari

Evergreen Shayari

yeh aarju e karam me aap se karun, yeh bhikh us ko dijiye jis ka khuda na ho

 

 

 

महफ़ूज़ था बिसात पे तब तक ही बादशाह, जब तक कि उसके सारे पियादों में जान थी!

 

 

 

खुदा महफूज रखें आपको तीनों बलाओं से वकीलों से, हक़ीमों से, हसीनो की निगाहो से

 

 

 

میرے لفظوں سے نہ کر میرے کردار کا فیصلہ

تیرا وجود ٹوٹ جائے گا میری حقیقت ڈھونڈتے ڈھونڈتے

Mere Lafzoon Se Na Kar Mere Kirdaar Ka Faisla

Tera Wajood Toot Jaye Ga Meri Haqeeqat Dhoontey Dhoondtey

मेरे चरित्र को मेरे शब्दों से नहीं आंकें

टूट जाएगा तेरा वजूद, ढूंढ रहा है मेरा सच

 

 

 

سنا ہے ہر چیز کی ایک انتہا ہوتی ہے

پھر یہ محبت کیوں کسی سے بے انتہا ہوتی ہے

Suna Hai Har Cheez Ki Aik Inteha Hoti Hai

Phir Yeh Mohaabat Kun Kisi Se Be Inteha Hoti Hai

सुना है हर चीज का अंत होता है

फिर यह प्यार किसी के लिए अंतहीन क्यों है?

 

 

 

عجیب سی محبت ہے میری بھی

لڑتا بھی تم سے ہوں اور مرتا بھی تم پر ہوں

Ajeeb Se Mohaabat Hai Meri Bhi

Larta Bhi Tum Se Houn Aur Marta Bhi Tum Par Houn

मेरा भी एक अजीब सा प्यार है

मैं तुमसे लड़ता हूं और तुम्हारे लिए मरता हूं

 

 

 

नशा पिला कर गिराना तो सब को आता है

मज़ा तो जब है के गिरतों को थाम ले साक़ी

—अल्लामा इक़बाल

 

 

 

सुबह को बाग़ में शबनम पड़ती है फ़क़त इसलिए

के पत्ता पत्ता करे तेरा ज़िक्र बा वजू हो कर

—अल्लामा इक़बाल

 

 

 

हँसी आती है मुझे हसरते इंसान पर

गुनाह करता है ख़ुद लानत भेजता है शैतान पर

—अल्लामा इक़बाल

 

 

 

बात सजदों की नहीं ख़ुलूस ए दिल की होती है इक़बाल

हर मैख़ाने में शराबी और हर मस्जिद में नमाज़ी नहीं होता

—अल्लामा इक़बाल

 

 

 

दिलों की इमारतों में कहीं बंदगी नहीं

पत्थर की मस्जिदों में ख़ुदा ढूँढते हैं लोग

—अल्लामा इक़बाल

 

 

 

दिल पाक नहीं तो पाक हो सकता नहीं इंसाँ

वरना इबलीस को भी आते थे वुज़ू के फ़रायज़ बहुत

—अल्लामा इक़बाल

 

 

 

दिल में ख़ुदा का होना लाज़िम है इक़बाल

सजदों में पड़े रहने से जन्नत नहीं मिलती

—अल्लामा इक़बाल

 

 

 

सजदों के इवज़ फ़िरदौस मिले ये बात मुझे मंज़ूर नहीं

बे लौस़ इबादत करता हूँ बंदा हूँ तेरा मज़दूर नहीं

—अल्लामा इक़बाल

 

 

 

कौन ये कहता है, ख़ुदा नज़र नहीं आता

वही तो नज़र आता है जब कुछ नज़र नहीं आता

—अल्लामा इक़बाल

 

 

 

” Hazaro Mahfil Hai, Lakho
Mele Hai Par Jaha Tum Nahi,
Samajh Lena Ham Akela Hai “

 

 

 

तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िला क्यूँ लुटा

मुझे रहज़नों से गिला नहीं तिरी रहबरी का सवाल है

 

 

 

Hamaare baad ab mahafil men afsaane bayaan honge
Bahaaren hamako dhundhegi n jaane ham kahaan honge

Isi andaaz se jhumega mausam, gaaegi duniya
Mohabbat fir hasin hogi, najaare fir jawaan honge

N ham honge, n tum hoge, n dil hoga magar fir bhi
Hajaaron majilen hongi, hajaaron kaarawaan honge

 

 

 

” Phir se tere mehfil
mein chala aya hu
Andaz wahi h bs alfaz
naye laya hu “

 

 

 

” Mohabbat ki toh koi had
Koi Sarhad nahin hoti,
Hamare darmiyan ye
faasle kaise nikl aaye “

 

 

 

” Maine toh yun hi raakh
mein feri thi ungaliyan
Dekha jo gaur se teri
tasveer ban gai “

 

 

 

” Zindagi se yahi gila hai mujhe,
Tu bahut der se mila hain mujhae “

 

 

 

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो

क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो

आँखों में नमी हँसी लबों पर

क्या हाल है क्या दिखा रहे हो

बन जाएँगे ज़हर पीते पीते

ये अश्क जो पीते जा रहे हो

जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है

तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो

रेखाओं का खेल है मुक़द्दर

रेखाओं से मात खा रहे हो

 

 

 

दिल अमीर था और मुकद्दर गरीब था,
अच्छे थे हम मगर बुरा नसीब था।
लाख कोशिश कर के भी कुछ ना कर सके हम,
घर भी जलता रहा और समंदर भी करीब था।

 

 

 

सादगी इतनी भी नहीं है अब बाकी मुझमें,कि तू वक़्त गुज़ारे और मैं मोहब्बत समझूं।

 

 

 

औकात नहीं थी ज़माने में जो मेरी कीमत लगा सके,कम्बख़्त इश्क में क्या गिरे, मुफ्त में नीलाम हो गये।

 

 

 

ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं

साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

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